संयोग से मिले धार्मिक अस्तित्व को
पहचानने की कोशिश मैंने कभी नहीं की। जन्म लेने के कुछ साल बाद जब होश संभाला तो
देखा कि दुनिया मुझे मेरे हिंदू होने की गैरंटी दे रही थी। मेरे दिमाग़ में कभी
मुस्लिम, सिख, ईसाई या कोई और ब्रैंड
होने का ख़याल आया ही नहीं, और मैंने कभी हिंदू होना भी नहीं
सीखा। फिर भी धार्मिक रूप से हिंदू होने की कंडिशन और गैरंटियों को मैंने स्वतः
पहचान लिया। पूजा-पाठ करना, मंदिर जाने के अलावा इन कंडिशनों
या गैरंटियों में सिगरेट-शराब से दूर रहना, गाली-गलौच न करना,
हिंसा न करना, शादी होने तक हर लड़की को बहन
मानना, स्त्री का सम्मान व उससे कोमल व्यवहार करना, सर्वसमाज के प्रति समभाव रखना, माँस-मच्छी से दूर
रहना वग़ैरा-वग़ैरा शामिल था। अन्य बातें समान रहने पर जो व्यक्ति इन पर भरोसा कर
अमल करता है, वह हिंदू है।
लेकिन फिर उम्र के साथ चीज़ों को 360 डिग्री पर घूमते देखा! कुछ क्या सबकुछ असामान्य देखा। गली-पड़ोस में जाने
कितनी बार हुए झगड़ों में, बल्कि अकारण भी, हिंदुओं को अपने ही लोगों को माँ-बहन की गालियाँ देते देखा, हिंसा करते देखा। छत के ऊपर से चिल्ला रहे व्यक्ति को नीचे ज़मीन से झगड़
रहे व्यक्ति पर ईंट मारते देखा। बड़ा हुआ तो कई हिंदू लड़कों को छुप-छुपकर
सिगरेट-शराब पीते देखा। भेद खुलने पर लज्जित होने की बजाय खुलेआम पीते देखा।
लड़कियाँ छेड़ते देखा। उस समय वे कैसे धार्मिक नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं,
उसे क्या लिखना! सब जानते हैं। कुछ साल बाद जब मेरे गले की आवाज़
में भारीपन आया तो हिंदुओं ने ही मुझसे यह पूछना शुरू कर दिया कि मैं ‘पीता हूँ’
या नहीं। मेरे न कहने कुछ तो यक़ीन ही नहीं करते, कुछ हैरान
होते, और कुछ मेरे जवान होने पर हँसते। आज भी ऐसा होता है।
मैंने जिन बातों या उसूलों का ज़िक्र
किया, उनका उल्लंघन करना हिंदू धर्म में घोर अपराध है। कुछ
तो पाप के मुतरादिफ़ हैं। लेकिन मैंने अधिकतर हिंदुओं को ये पाप करते देखा है।
बड़े आत्मविश्वास और ख़ुशी से करते देखा है। यह मत सोचिएगा कि एक और पाखंडी
सेक्युलर आया हिंदुओं पर निशाना साधने। मैं तो बिल्कुल सेक्युलर नहीं हूँ। हाँ
पाखंडी ज़रूर हूँ। बिल्कुल उन लाखों-करोड़ों पाखंडियों में से एक हूँ जो अपने मतलब
और मज़े के लिए जब चाहे भगवान-धर्म को भूल जाता है, और आफ़त
पड़ने पर याद करता है। बात यह है कि मेरा पहला सिख मित्र तीन साल पहले और पहला
मुस्लिम दोस्त सिर्फ़ एक साल पहले ही बना। इनसे पहले मेरे ज़िंदगी पर हिंदू छाप ही
रही है। मैंने उसका व्यवहार क़रीब से देखा है। इसलिए किसी धार्मिक ज़िद पर मचे कोहराम
पर की जाने वाली मेरी बातों में हिंदू समाज से मिले अनुभवों की अधिकता होना
स्वाभाविक है।
ख़ैर, मेरी कोशिश सिर्फ़ यह बताने की है कि धार्मिक मूल्यों-नियमों की व्याख्या
अलग बात है, और आचरण अलग। बिल्कुल ऐसे ही जैसे संविधान के
मुताबिक़ देश का, सरकार का हमसे अच्छा नागरिक होने की आशा
रखना अलग है, और हमारा अच्छा नागरिक होना अलग। जैसे रेड लाइट
पर ट्रैफिक पुलिस की हमसे गाड़ी रोकने की उम्मीद रखना अलग है, और हमारा रुकना अलग। धर्म विशेष में नशा वर्जित होना अलग बात है और नशा
करना अलग। अहिंसा परमो धर्म और हिंदू धर्म का तो फ़ेवीकॉल का जोड़ है जी। लेकिन,
इस सिद्धांत का होना अलग है और किसी हिंदू का अहिंसावादी होना अलग।
कहने का मतलब यह है कि जैसे एक हिंदू होने का मतलब नशा न करने, हिंसा न करने, व्यभिचार न करने और जाने क्या-क्या न
करने की गैरंटी नहीं है, भाईसाहब उसी तरह बीफ़ न खाना भी
हिंदू होने की गैरंटी नहीं है! बस इतनी सी बात है। आज हिंदू धर्म में गौमाँस
वर्जित है, इतिहास में था या नहीं था, यह
बात अलग है, और हिंदू गौमांस खाता था या खाता है, नहीं खाता था या नहीं खाता है, यह बात अलग...आपसे भी
कह रहा हूँ आदरणीय मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा।
दादरी घटना के बाद तो इस बात को
प्रचंडता के साथ ऐसे पेश किया जा रहा है कि चाहे कुच्छई हो जाए, एक हिंदू गौमाँस नहीं खा सकता। इस दुखद घटना के बाद हाल में कुछ लेखकों ने
ऐतिहासिक तथ्य सामने रख दावा किया कि इतिहास में हिंदू भी गौमाँस खाते थे। इसका
विरोध करने वालों ने वेद पढ़ डाले। वे वेदों के उन मंत्रों को छाँट-छाँटकर लाए
जिनके मुताबिक़ यह स्पष्ट था कि वेद इस बात की गैरंटी देते हैं कि हिंदू तो गौमाँस
खा ही नहीं सकता। वैसे ही जैसे हिंदू गाली नहीं दे सकता, हिंसा
नहीं कर सकता, व्यभिचार नहीं कर सकता, जातिगत
भेदभाव नहीं कर सकता, भ्रष्टाचार नहीं कर सकता, झूठ नहीं बोल सकता, नशा नहीं कर सकता, किसी की बेटी नहीं छेड़ सकता, उसके चेहरे पर तेज़ाब
नहीं डाल सकता, उसका बलात्कार नहीं कर सकता, चोरी नहीं कर सकता, बकरा-मुर्गा-मछली-भैंसा-सुअर-केकड़ा
नहीं खा सकता, ठीक वैसे ही हिंदू गौमाँस नहीं खा सकता। यह
संभव ही नहीं है।
अब भई मुझे तो कोई वेदज्ञान नहीं।
नहीं पता कि गौमाँस का निषिद्ध होना केवल आज का विषय है या प्राचीन काल में भी ऐसा
ही था। तुच्छ विचारक को समाज पर आरोप लगाने का अधिकार नहीं। लेकिन महापंडित राहुल
सांकृत्यायन (असल नाम केदारनाथ पांडे) के चर्चित उपन्यास ‘वोल्गा से गंगा’ के एक
अध्याय ‘प्रभा’ में अश्वघोष, जो एक ब्राह्मणपुत्र
और सभी वेदों का महाज्ञानी है, और प्रभा, जो यवन पुत्री है, के प्रेम प्रसंग से इस संदर्भ में
यह पढ़ा जा सकता है (तस्वीर में पढ़ें),
अब हो सकता है और लेखकों की तरह मुझे
भी चुनौती दे दी जाए कि हिम्मत है तो मुस्लिमों के लिए कहो कि वे सुअर खाते हैं।
इस पर यही कहना है कि जब मैं हिंदुओं की गैरंटी नहीं लेता, तो उनकी भी क्यों लूँ! ऊपर जिन मज़हबी उसूलों का ज़िक्र मैंने किया,
उनमें से कई हिंदू व इस्लाम धर्म में एक जैसे हैं। मसलन औरत का
एहतिराम, नशे से दूरी, गाली-गलौच न
करना, हिंसा न करना, तिरस्कार-ए-व्यभिचार
आदि-इत्यादि। लेकिन कई मुस्लिम भी 360 डिग्री वाले होते हैं।
और मुझे यह कहने में कोई डर नहीं, कि जैसे गौमाँस न खाना
आपके हिंदू होने की गैरंटी नहीं है, वैसे ही सुअर न खाना भी
मुस्लिम होने की गैरंटी नहीं है। हो सकता है कुछ मुस्लिम खाते हों, और छुपाते भी हों। यहाँ ख़ौफ़ खाते हों, लेकिन बाहर
खाते हों। भई झूठे, पाखंडी सिर्फ़ हिंदुओं में थोड़े न हैं।
इनकी मौजूदगी तो हर मज़हब में है...अब ठीक है न! ख़ुश!
लेकिन यह बताइए कि अगर यह बात सामने आ
जाए कि मुस्लिम समाज में भी ऐसे लोग हैं जो सुअर खाते हैं तो यह जानकर आप दुखी
होंगे या ख़ुशी के मारे उछल पड़ेंगे? दुखी तो होंगे नहीं, वर्ना उन पर आरोप ही क्यों
लगाते। तो क्या ख़ुशी में उछलकर यह कहेंगे कि देखा!! बेटा हम पर गाय खाने की तोहमत
लगा रहे थे, अब खुल गई न इनकी भी पोल।
मुझे किसी पक्ष को गाय-सुअर खाने न
खाने पर मजबूर नहीं करना। न ही किसी को पाक साबित करना है। मैंने ख़ुद कई हिंदुओं
को परिवार से झूठ बोलकर बाहर मटन-चिकन पर चटकारे लेते देखा है। मुस्लिम भी ऐसा
नहीं करते होंगे, इसकी गैरंटी भी नहीं
दी जा सकती। पाक तो कोई है ही नहीं तो साबित क्या करना! हाँ इतना ज़रूर ग़ौर करता
हूँ कि राजनीति हमें विचार तो 'विकास-विकास-विकास' का देती है, लेकिन विमर्श में गौमाँस और सुअर डाल
देती है। अब इसका निष्कर्ष जिस रूप में निकलकर सामने आएगा उसकी कल्पना कर
हँसते-हँसते निराश होता हूँ और निराश होते-होते हँसता हूँ।
पता नहीं, गाय-सुअर न खाने के अलावा इंसान होने की कोई और गैरंटी है या नहीं?
दुष्यंत कुमार
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