हमारे
संपादक जी नूडल्स के दीवाने हैं। मैगी पर बैन लगने के बाद दो हफ़्ते तक उन्हें
नींद नहीं आई थी। वह समझ नहीं पा रहे थे कि बिना मैगी के वह कैसे जीएंगे। इसीलिए
जब मैगी लौटी तो उन्होंने एक हफ़्ते तक केवल मैगी खाकर सेलीब्रेट किया। लेकिन जब
उन्होंने सुना कि बाबा रामदेव ने भी नूडल्स लॉन्च कर दिया है तो उनकी तो जैसे
बाँछें ही खिल गईँ। उन्हें गारंटी मिल गई कि अब बिना नूडल्स के उन्हें कभी नहीं
रहना पड़ेगा। विदेशी कंपनियों पर तो कभी भी बैन ठोका जा सकता है मगर देशी कंपनी और
वह भी रामदेव की कंपनी तो सदा चलती रहेगी। जब तक हिंदुत्व की राजनीति रहेगी, कोई उनका बाल बाँका नहीं कर
सकता।
अपने इसी
उत्साह में उन्होंने रामदेव का इंटरव्यू करने के लिए मुझे तुरंत हरिद्वार दौड़ा
दिया। रामदेव के नूडल्स को लेकर कॉन्ट्रोवर्सी भी हो गई थी, इसलिए उन्हें लगा कि बिकाऊ माल
मिल जाएगा। मैंने भी सोचा रामदेव से मिले बहुत दिन हो गए हैं और लगे हाथ गंगा
स्नान भी हो जाएगा, इसलिए पहुँच गया पतंजलि योग पीठ। रामदेव
उस समय योगा-वोगा से फारिग होकर नूडल्स खा रहे थे। सौजन्यतावश उन्होंने मुझसे भी
नूडल्स खाने का आग्रह किया। मैं भला क्यों मना करता। इतना पवित्र नूडल्स तो हर
भारतवासी के उदर में जाना ही चाहिए, लिहाज़ा मैंने भी बिना
देर किए यह कार्य संपन्न कर दिया। एक लंबी डकार लेकर जब रामदेव ने अपनी दाढ़ी पर
लगे नूडल्स के टुकड़ों को पोंछ लिया तो मैंने सवाल जवाब का सिलसिला शुरू किया।
यह बताइए
कि ये अचानक आपको नूडल्स बेचने की क्यों सूझी?
इतना
बढ़िया कारोबार है, घर-घर में खाया जाता है, बच्चे-बूढ़े दीवाने हैं
इसके, इसलिए सोचा कि क्यों न मैं भी इसमें हाथ आज़माऊं।
आख़िर तेल-साबुन से लेकर आटा-दाल तक तो बेच ही रहा हूँ। लेकिन आपसे अपने मन की बात
बताऊँ, नूडल्स मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। जब भी किसी को खाते
देखता था तो मन ललचाने लगता था। लेकिन साधु होने और आयुर्वेद का हिमायती होने की
वजह से मुझे बहुत संयम दिखाना पड़ता था। अभी जब मैगी पर बैन लगा तो मुझे लगा कि यह
मौक़ा अच्छा है। नूडल्स पर आयुर्वेद का ठप्पा लगा दो बस। अब इसे साधु-असाधु सब खा
सकते हैं।
लेकिन
इससे तो भारतीय संस्कृति को दूषित करने का आरोप लग सकता है आप पर?
ऐसा है
अपने वेदों और पुराणों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उसमें से आप जब चाहे जो
चाहे ढूंढकर ला सकते हो। जो चीज़ें उनमें नहीं होतीं उन्हें भी पैदा किया जा सकता
है। बस आपको कल्पना के घोड़े दौड़ाने हैं और भाषा का खेल खेलना है। मैंने भी वेदों
की कुछ ऋचाएँ और शास्त्रों के कुछ श्लोक ढूंढ लिए हैं जिनके आधार पर मैं दावा कर
सकता हूँ कि नूडल्स दरअसल, नूडलम् नामक भारतीय व्यंजन था और जब बौद्धों को यहाँ से खदेड़ा गया तो वे
उसे पूर्वी एशिया में अपने साथ ले गए। इसीलिए आप देखिए कि जहाँ-जहाँ बौद्ध धर्म है,
नूडल्स भी हैं।
लेकिन
अगर किसी ने पोल खोल दी तो, कह दिया कि वेदों-पुराणों में ऐसा नहीं है तब क्या
करेंगे आप?
मैं कह
दूँगा कि जो लोग ऐसा बोल रहे हैं वे वामपंथी हैं, हिंदुओं के विरोधी हैं, पश्चिमी
दृश्टि से देखने के आदी हैं, बस हो जाएगा काम। आम लोग तो
वेद-पुराण पढ़ते नहीं हैं, हम जो कहेंगे उसे मान लेंगे और
पिल पड़ेंगे विरोधियों के ख़िलाफ़।
वाह क्या
आयडिया है और आपकी खोज तो कमाल की है?
खोज नहीं
सोच कमाल की है। धंधे में इसी तरह तिकड़में करनी पड़ती हैं। अब तो मैं पिज्जा और
बर्गर की चेन भी शुरू करने के बारे में सोच रहा हूं।
पिज्जा, बर्गर? अब
यह मत कहिएगा कि ये भी भारतीय व्यंजन थे?
हों या न
हों, रामदेव को तो यही साबित
करना होगा और वह करेगा। यही तो उसका ट्रेड सीक्रेट है। मैं ये सिद्ध कर दूँगा कि
आयुर्वेद में इसका ज़िक्र है और कई बीमारियों के इलाज़ के लिए इन व्यंजनों का
उपयोग होता था। यूरोपीय लोग भी इसे दवाईयों के रूप में ले गए थे, मगर बाद में अपनी आदत के अनुसार उन्होंने इसका रूप बिगाड़ दिया। मैं
इन्हें स्वास्थ्यवर्धक कहकर बेचूंगा और दोगुने दामों में बेचूंगा। आप देखना भारतीय
कैसे टूट पड़ेंगे इस पर। देश भर में हर नुक्कड़ पर रामदेव पिज्जम् हट और रामदेव
बर्गरम् कार्नर की फ्रेंचाइजी दूँगा और खुद उसका विज्ञापन करूंगा। एमडीएच मसाले के
महाशय की तरह।
रामदेव
जी मान गए आपको। क्या दिमाग़ पाया है आपने। फिर आपके हिंदुत्व का क्या होगा?
क्या
होगा मतलब? उसका
तो प्रचार ही होगा। जो भी नूडलम्, पिज्जम्, बर्गरम् खाएगा उसे रामदेव याद आएंगे और फिर वह हिंदुत्व को याद करेगा।
इस तरह
इनडायरेक्ट एडवर्टायडिंग होगी। मैं तो इनका एक्सपोर्ट भी करूंगा। विदेशों में बसे
एनआरआई तो लहालोट हो जाएंगे। इन्हें सामने रखकर रोने लगेंगे कि देखो ये हमारे
कंट्री का डिश है। उनके पास खूब पैसा है मगर बेचारे खुद को भारतीय साबित करने के
लिए मरे जाते हैं। उन्हें जब ये सब मिलेगा तो दस गुना क़ीमत पर खरीदेंगे और
खाएंगे। अरे आप देखते जाइए ये ओबामा और कैमरन भी खाएंगे इंडियन के वोट लेने के
लिए। अब बताओ हिंदुत्व का प्रचार मैं ज्यादा कर रहा हूँ या मोदी जी?
ओह, यह तो बहुत दूर की सोच है। सचमुच
में आपने मोदी जी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। लेकिन आपको ये विदेशी शराब कंपनियों
का भी कुछ उपाय सोचना चाहिए। पूरा देश विदेशी पी रहा है, यह
भारतीयता और हिंदुत्व के लिए कोई अच्छी बात है क्या?
आप ठीक
कह रहे हैं। मेरा भी इस ओर ध्यान गया है। मैं प्लान कर रहा हूँ कि मधुशालाओं की भी
एक चेन शुरू करूँ।
लेकिन
इससे तो आप पर आरोप लगेगा कि आप लोगों को शराबी बना रहे हैं, नशे की लत डाल रहे हैं?
देखिए, मैं इस तरह के आरोपों से लड़ना
भली-भाँति जानता हूँ। पहले मैं विदेशी दारू के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ूंगा। इसके बाद
आयुर्वेदिक मदिरा का ब्रांड लॉन्च करूंगा। वेदों और पुराणों के हवाले से मैं सिद्ध
कर दूंगा कि सोमरस हमारा पवित्र पेय पदार्थ था और स्वास्थवर्धक भी। ऋषि-मुनियों से
लेकर देवता तक इसे ग्रहण करते थे। फिर आयुर्वेद में भी सोमरस-पान से होने वाले लाभ
बताए गए हैं। मैं पतंजलि सोमरसम् के प्रचार अभियान के ज़रिए लोगों को इसके बारे
में जागरूक करूंगा। फिर आप तो जानते ही हैं कि मैं स्वदेशी का घनघोर समर्थक हूँ।
इसलिए लोगों से कहूँगा कि पीना ही है तो देशी पियो और सुरक्षित पियो।
लेकिन
सोमरस की व्यवस्था आप कर रहे हैं तो मनोरंजन के लिए कैसिनों यानी जुआघर भी होने
चाहिए।
आप इसे
कैसिनो या जुआघर मत कहिए। इसके लिए हमारे शास्त्रों में शब्द है द्यूत क्रीड़ा
गृह। यह आम जन के मनोरंजन का एक बड़ा साधन था। महाभारत में द्यूत क्रीड़ा के दौरान
पांडव अपना सर्वस्व हार गए थे इसलिए उसके बारे में जनधारणा बहुत खराब बन गई।
बहरहाल, मेरी मान्यता यह है कि
आधुनिक द्यूत क्रीड़ा गृह बने और लोग उसमें आनंद लें तो कोई बुराई नहीं है। बल्कि
ये तो अच्छा ही है क्योंकि मैंने सुना है बहुत से भारतीय इसके लिए विदेशों मे जाते
हैं। इससे हमे भारतीय मुद्राओं की हानि होती है। आखिर इसीलिए तो गोवा आदि में कैसिनो
के लाइसेंस देने पर विचार किया जा रहा है न।
आप इसमे
किस तरह से योगदान देने की सोच रहे हैं?
देखिए
अभी मैंने इस बारे में अधिक सोचा नहीं है। लेकिन अगर इसमें कारोबारी फ़ायदा दिखा
तो पुरानी परंपरा को जीवित करने के बारे अवश्य कुछ किया जा सकता है। दरअसल, महाभारत के द्यूत क्रीड़ा प्रसंग
से इस खेल के बारे में बहुत ही नकारात्मक धारणा बन गई है। लेकिन देश हित में इसे
फिर से शुरू करने में बुराई नहीं है। मुझे पतंजलि द्यूत क्रीड़ा केंद्र की कल्पना
करके अच्छा लग रहा है। देखिए भविष्य में शायद इस दिशा में कुछ करूँ।
इसी से
जुड़ा मसला गणिकालय का भी है। गणिकाएं भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही हैं। भारत
के बहुत से संपन्न लोग मलाया, पटाया वग़ैरा इसी मक़सद से जाते हैं और भारतीय मुद्रा
का ह्रास होता है। भारतीय संस्कृति के रक्षक होने के नाते क्या आपको इस दिशा में
भी कुछ नहीं करना चाहिए?
देखिए
स्त्रियों से मुझे दूर ही रखिए। मैं ठहरा ब्रह्मचारी। मैं इन पचड़ों में नहीं
पड़ना चाहता। लोग मुझे बदनाम कर देंगे। आपकी चिंता सही है और मैं इससे इत्तिफ़ाक़
रखता हूँ कि जिस तरह पहले नगरवधुएँ होती थीं, होनी चाहिए। आम्रपाली और वसंतसेना का नाम हम सब बहुत
सम्मान के साथ लेते ही हैं। लेकिन मैं इस दिशा में कुछ नहीं कर सकूंगा। मेरी कुछ
सीमाएं हैं। अलबत्ता सरकार से कहूंगा कि वह कुछ करे। संस्कृति मंत्री महेश शर्मा
बहुत समझदार मंत्री हैं। मैं तो उनका घनघोर प्रशंसक हूँ। दादरी और लेखकों द्वारा
सम्मान लौटाए जाने के प्रसंग में वह अपनी विद्वत्ता का परिचय दे ही चुके हैं। मैं
उनसे कहूंगा कि गणिकालय विकास योजना शुरू करें। इससे बहुत सारी अभागी स्त्रियों को
रोज़गार भी मिलेगा।
भारतीय
संस्कृति की रक्षा के लिए आप इतना कुछ कर रहे हैं कि आपको नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए?
अरे नोबल
पुरस्कार तो मुझे बहुत पहले मिल जाना चाहिए था, मगर मेरी चमड़ी काली है न इसलिए नहीं दिया गया। एक
साधु ने पूरी सरकार उलट दी यह क्या मामूली बात थी? लेकिन
नहीं, उन्हें तो कोई गोरा चाहिए।
नहीं ऐसा
तो नहीं है। बहुत से अश्वेत लोगों को भी नोबल मिला है। मंडेला, टैगोर, अमर्त्य
सेन आदि तो गोरे नहीं थे।
कभी-कभी
कृपालु हो जाते हैं गोरे, मगर हमेशा नहीं। बहरहाल, आपको राज की बात बताता हूँ।
मैंने गोरा होने के लिए त्वचा का उपचार शुरू कर दिया है। तीन साल के अंदर मैं
अंग्रेजों जैसा गोरा दिखने लगूंगा। फिर देखता हूँ वे मुझे नोबल पुरस्कार कैसे नहीं
देते।
मुझे भी
नोबल पुरस्कार का लालच सताने लगा था। रामदेव से गोरा बनने की क्रीम मांगने ही वाला
था कि मेरे अंदर का भारतीय गौरव जाग गया और उसने मुझसे कहा कि तुम जैसे हो अच्छे
हो। नोबल पुरस्कार के बिना भी तुम्हारा काम चल जाएगा। और फिर ऐसे पुरस्कार का क्या
करोगे, क्योंकि तय है कि देश में
सहिष्णुता बचाने के लिए उसे लौटाना पड़ेगा। लिहाज़ा, मैंने
रामदेव को प्रणाम कहा और वापस लौट आया।
अलबत्ता
जबसे मैंने संपादक जी को पिज्जम, बर्गरम और सोमरसम के बारे में बताया है, वह गदगद
हैं।
No comments:
Post a Comment