पैरिस पर आईएस
के जाहिलों द्वारा किए गए हमले के बाद दुनियाभर के मुसलमानों की गर्दन दूसरे मज़हब
के मौक़ापरस्तों और पश्चिम की राजनीति के हाथ में आ गई है। आतंकवाद किसी मज़हब का
नहीं होता का राग आलापनेवाले बेसुरे होकर चिल्लाने लगे हैं। सब
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से निशाना तो मुसलमानों पर लगा रहे हैं, लेकिन चोट इस्लाम की विचारधारा को पहुँचा रहे हैं जो सभी मज़हबों की तरह
अमन का ही पैग़ाम देती है।
इस हमले से
इस्लाम के प्रति नकारात्मकता रखने वाले लोगों की सोच को तो बल मिला ही है, पश्चिमी नेतृत्व और मीडिया का भी उग्र रूप सामने आया है। भारत में आतंकी
हमला होने पर ‘आतंक के ख़िलाफ़ एकता’ का जुमला फेंककर शांति का संदेश देने वालों
की असहिष्णुता भी देखने लायक़ है। एक वक़्त से हज़ारों लोग आईएस द्वारा काटे-जलाए
गए, महिलाओं का बलात्कार हुआ, उन्हें
सरेआम बेचा गया और मानवता के रक्षक शांति का संदेश भर देते रहे। लेकिन ख़ुद पर
हमला होते ही इन्हें आतंकवाद भी नज़र आ गया, उसकी ज़ात भी
नज़र आ गई और उसका इलाज भी नज़र आ गया।
वहाँ के
पत्रकारों के लिए भी आतंक इस्लामिक हो चला है। वे आतंक के ख़िलाफ़ अब हो रहे
हथियारों के इस्तेमाल को जायज़ ठहरा रहे हैं। मीडिया अपनी ख़बरों की ब्रेकिंग
हेडलाइन में आतंकियों के 'अल्लाह-हू-अकबर'
(इसकी तस्वीर है) को बार-बार इंवर्टिड कॉमा में दिखा रहा है। यह बात
शायद सब लोग न समझ सकें, लेकिन संपादकीय स्तर के लोग जानते
हैं कि शब्दों के साथ कैसे छवि स्थापित की जाती है।
दुनिया के चौधरी बराक ओबामा
मुसलमानों को नसीहत दे रहे हैं कि वे सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे इस संक्रमण
(आईएस) का शिकार न हों। यह और बात है कि चौधरी साहब के देश में पार्क, स्कूल-यूनिवर्सिटीज़ में हथियारबंद युवाओं द्वारा घुसकर लोगों को मारे
जाने की घटनाएँ काफ़ी वक़्त से हो रही हैं।
इंगलिश पत्रकार
अपने लेखों में इस्लामिक आतंकवाद का ज़िक्र दिल खोलकर कर रहे हैं। लोगों से पूछ
रहे हैं कि (इसका भी स्क्रीन शॉट है) क्या हमने इस्लामिक आतंकवाद के प्रति ज़्यादा
नरमी बरती है। यह भी कह रहे हैं कि हर बार बात शांति-अहिंसा से नहीं बनती।
जाने-अनजाने
मुसलमानों पर हो रहे इस प्रत्यक्ष-अप्रत्य़क्ष विरोध के शोर में टोनी ब्लेयर का वह
बयान गुम हो गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि इराक़ की मौजूदा हालत के लिए
पश्चिमी नीतियाँ काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं, जिसके लिए उन्होंने माफ़ी मांगी थी। पुतिन ने भी जी20 में असलियत सबके सामने रख दी है। लेकिन ओलांद की हुँकार के आगे सब उड़
गया। चंद रोज़ पहले पुतिन के हुक्म से आईएस पर की जा रही कार्रवाई का विरोध कर रहे
पश्चिमी राष्ट्र अब उनके भाई हो चले हैं। यूएन से प्रस्ताव तक पास करवा लिया है।
अब तो आतंक का सर्वनाश होकर रहेगा। एक भी आतंकी नहीं बचेगा। सबको मार देंगे। क्यों,
क्योंकि चिंगारी हमारी मूँछ तक आ गई है।
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