देश भर में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। ऐसे वक़्त में हमें सहिष्णुता सीखने की जरुरत है। अगर इस देश में कोई व्यक्ति सबसे अधिक सहिष्णु है तो वो है कब्ज का मरीज। जो कि प्रायः प्रत्येक परिवार में एक होता ही है।
कब्ज का मरीज कई प्रयासों के बाद शौचालय में सफलता को प्राप्त होता है। अपनी असफलताओं से निराश होने के बजाय वो उनसे सीखता है और अगले प्रयास में शरीर की सम्पूर्ण शक्ति को मल द्वार की ओर धकेल देता है।
वह कब्ज का मरीज रोज़ प्रातः परिवार वालों को शौचालय प्रयोग करने के लिए एक-एक घण्टे तक इंतज़ार करवाता है। रोज़ सुबह परिवार के अन्य सदस्य उसे कोसते हैं लेकिन वो अपनी सहिष्णुता का परिचय देता है और किसी भी सदस्य को शौच करने के लिए पाकिस्तान जाने की सलाह नहीं देता है।
कब्ज का मरीज सिर्फ सहिष्णु ही नहीं होता बल्कि उसमें एकाग्रता की भी कोई कमी नहीं होती। कब्ज का मरीज आम इंसान के मुकाबले दस गुना अधिक गंभीरता से सोचता है। कहावत भी है "अधिक समय तक शौंच, अधिक समय तक गंभीर सोच"। शौचालय में व्यक्ति का गंभीर मुद्दों से जो साक्षत्कार होता है वह पद्मसन में बैठकर ध्यान की गहन अवस्था में भी संभव नहीं है। कब्ज का मरीज गंभीर चिंतक ही नहीं होता अपितु कुशाग्र बुद्धि का धनी भी होता है।
आज भारत को जरूरत है एक ऐसे प्रधानमंत्री की जो कब्ज का मरीज हो और देश की परेशानियों को पेट की परेशानी समझ उनके इलाज के लिए कायम चूर्ण से लेकर बंगाली बाबा तक के चूर्ण तक हर संभव प्रयास करे।
मैं आशा करता हूँ भारत का अगला प्रधानमंत्री कब्ज से पीड़ित होगा या वर्तमान प्रधानमंत्री ही अतिशीघ्र कब्ज को प्राप्त हो। कब्ज पीड़ित प्रधानमंत्री लम्बी यात्राओं से बचेगा और भाषण देते समय अधिक जोर लगाने से घबराएगा।
मैं आप सब से अपील करता हूँ कि आप सभी कब्ज पीड़ित विधायक और सांसद को वोट दें। और चुनाव आयोग से ये दरख्वास्त करता हूँ कि एफिडेविट भरते समय उम्मीदवार के कब्ज पीड़ित होने की पुष्टि करें अन्यथा उसका नामांकन रद्द कर दें।
धन्यवाद!
चच्चा की चौपाल
हे महराज.... अब तो लगता है हसते हसते असहिष्णुता, पतला दस्त मन कर बाहर निकल जायेगा..... बढ़िया कटाक्ष ....
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