Saturday, February 13, 2016

एक बार फिर से पूरे देश ने देख लिया मीडिया आरएसएस की मिलीभगत को

 आरएसएस की मीडिया और जनता का जेएनयू
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में कथित तौर पर अफज़ल गुरु की शहादत दिवस मनाने और कश्मीर की आज़ादी के लिए भारत की बर्बादी के नारे लगाने वाले छात्रों के एक गुट के बहाने देश की मीडिया जनवादी रुख वाले छात्रों को जिस तरह से परेशान कर रही है उससे यह साबित होता है की पत्रकारिता अब सच और ईमानदार का साथी के बजाए सत्ता और कट्टरता के पुजारियों की हो गई है. 
इण्डिया न्यूज़ के दीपक चौरसिया तथा ज़ी न्यूज़ के रोहित सरदाना ने जेएनयू मुद्दे को लेकर जैसा रुख अख्तियार किया है वह साफ़ तौर पर यह दर्शाता है की इन दोनों चैनलों के मालिक और उसके एंकर-रिपोर्टर पूरी तरह से नागपुर के इशारों पर काम कर रहे हैं.

रोहित सरदाना के साथ पैनल डिस्कसन में दिल्ली विवि के छात्र उमर खालिद एवं दीपक चौरसिया के साथ बहस में शामिल जवाहर लाल नेहरु विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष कनैह्या कुमार से इन दोनों एंकर ने जैसा व्यवहार किया बिलकुल वैसा व्यवहार एबीवीपी के गुंडे किया करते हैं. 

हैदराबाद विवि के दलित रिसर्च स्कालर डॉ रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या में शामिल एबीवीपी, केन्द्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय, स्मृति ईरानी की आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई परन्तु जेएनयू में सांस्कृतिक संध्या आयोजित करने के अपराध में दिल्ली पुलिस ने छात्रसंघ अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया. 

इस गिरफ्तारी के लिए रोहित सरदाना और दीपक चौरसिया लगातार दबाव बनाए हुए थे. पैनल डिस्कसन जिसे घेर कर प्रताड़ित करना कहना ज्यादा ठीक रहेगा में रोहित सरदाना और दीपक चौरसिया ने उमर खालिद और कन्हैया कुमार पर देशद्रोही और आतंकी का समर्थक तक कहा जबकि दोनों छात्र नेताओं ने देशद्रोह से इंकार किया और उस छात्र समूह जिसने जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी की थी की निंदा की. 

निंदा के साथ उनके कुछ बुनियादी सवाल भी थे जिसे सुनने की हिम्मत वर्तमान में मीडिया के पास नहीं. कन्हैया को बिल्कुल जान से मार देने को उतावले दीपक चौरसिया ने जब कन्हैया को कश्मीरी पंडित के मामले में उलझा कर निरुत्तर करना चाहा तो उसने दो गुने तर्क से चौरसिया को चुप करा दिया, कन्हैया को जब चौरसिया ने मकबूल भट्ट की हिंसक वारदातों में लपेटना चाहा और कहा तब आप पैदा भी नहीं हुए थे तो कन्हैया ने चौरसिया को बोला देश जब आज़ाद हुआ था तब आप नहीं पैदा हुए थे इसका अर्थ यह नहीं है की आप देश की आजादी पर बात नहीं कर सकते. 

एबीवीपी के छात्र नेता के उकसाने पर दीपक चौरसिया ने कन्हैया से भारत माता की जय बोलने के लिए डांटते हुए कहा तो कन्हैया ने भारत की तमाम माताओं, पिताओं, बहनों, मजदूरों, दलितों, मुसलमनों की जय कर दी तो दीपक हत्थे से उखड़ गए.
  
जिंदल प्रकरण में जिस चैनल का मालिक जमानत लिया हो, जिसका एंकर तिहाड़ जेल में दिन रात गुजार चुका हो उस जी न्यूज़ के एंकर रोहित सरदाना से उमर खालिद की मुठभेड़ होती है. सरदाना कहते हैं, पांच सौ करोड़ रुपये की सब्सिडी सरकार देती है जेएनयू को, आप मुफ्त की रोटी तोड़ने जाते हैं, आतंकियों का समर्थन करते हैं तो उमर खालिद ने कहा वह टैक्स सिर्फ आपका नहीं है. वह टैक्स हमारा भी है. क्या कभी आपने सवाल किया कि आर एस एस जिस तरह से संसाधनों पर कब्ज़ा कर रही है, हमारे टैक्स का इस्तेमाल गुंडागर्दी और कट्टरता फैलाने के लिए कर रही है उससे सवाल किया जाएगा तो हम भी जवाब देने को तैयार हैं. 

अफज़ल गुरु की न्यायिक हत्या पर उमर खालिद से लेकर कन्हैया कुमार तक ने जजमेंट को कोट किया कि सबूत तो कुछ नहीं है पर देश की सामूहिक भावना इनकी फांसी पर आ कर रूकती है इसलिए फांसी ज़रूरी हो जाती है. बगैर सबूत किसी को फांसी पर लटका देंगे और सवाल उठेगा तो देशद्रोही कह देंगे. 

आज देश की मीडिया में दीपक चौरसिया और रोहित सरदाना जैसे तमाम पत्रकार और एंकर आरएसएस की ब्राह्मणवादी विचारधारा जिसमें दलितों/पिछड़ों/मुसलमानों/औरतों के लिए कोई जगह नहीं है के लिए जनवाद के पेड़ जेएनयू को काट देना चाहते हैं. इतनी हताशा और पागलपन टीवी पर करोड़ो दर्शक देख रहे हैं. जेएनयू और दिल्ली विवि के जनवादी छात्र नेताओं से टीवी स्टूडियो भरा पड़ा है ,पहली बार ऐसी बहसें सुनने और देखने को मिल रही हैं जिसमे भारतीय टेलीविजन न्यूज़ का चेहरा पूरी तरह से सामने आया है. 

ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चन्द्र हिसार से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी रहे और चुनाव हार गए. दीपक चौरसिया और रोहित सरदाना का देशप्रेम एक विचारधारा विशेष की सीमाओं तक जा कर दम तोड़ देता है. आर एस एस की शाबाशी पा कर हिन्दू महासभा ने गणतंत्र दिवस को काला दिवस मनाया, न तो रोहित सरदाना और न ही दीपक चौरसिया ने सवाल उठाये. 

बीजेपी और एबीवीपी की विचारधारा से मेल खाते हुए लोग नाथूराम गोडसे की उस पिस्टल की पूजा करते हैं जिससे महात्मा गांधी की हत्या हुई, न तो इण्डिया न्यूज़ को देशद्रोह दिखा और न ही ज़ी न्यूज़ को. 

तो क्या लगता है, दर्शक इतनी मूर्ख है की वह आपकी एजेंडा सेटिंग के झांसे में आ जाएगा, हरगिज़ नहीं. इसका जीता जागता उदहारण है फेसबुक के फ्री बेसिक पर रोक. फेसबुक ने लोगों को कई तरह से बरगलाने की कोशिश की परन्तु जागरूक जनता ने उसके प्रपंच को पहचाना और अंत में जो फेसबुक नरेंद्र मोदी के साथ भारत के शान में कसीदे पढ़ रहा था उसी ने कह दिया की अंग्रेज होते भारत के मालिक तो फेसबुक का फ्री बेसिक प्लान यहाँ लागू हो जाता. इस बयान के बाद आपत्ति जताई गयी तो सम्बंधित अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ा.

भारतीय मीडिया में ऊँची जाति के पुरुष बैठे हुए हैं. उनका एकसूत्रीय एजेंडा है देश रोहित वेमुला की शहादत को भूल जाए और पूरा मसला उस पाकिस्तान और कश्मीर के इर्द गिर्द आ सिमटे जिस पाकिस्तान में नरेंद्र मोदी बिरयानी खाने गए और जिस कश्मीर में अलगाववादियों के समर्थन में रहने वाली पीडीपी के साथ आर एस एस ने सरकार बनाई.

जेएनयू का जनवाद एक बार फिर से पूरे देश ने देख लिया और देख लिया इलेक्ट्रानिक मीडिया के उन एंकरों को भी जिनकी सुबह और शाम दिल्ली में आरएसएस दफ्तर झंडेवालान में गुजरती है.
-मोहम्मद अनस

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