Thursday, January 20, 2011

अंधविश्‍वासी और मूर्ख व्‍यक्ति में क्‍या अंतर होता है?

भूतकाल की कड़वी तथा मीठी यादों वाले निर्बल इच्‍छाशक्ति वाले व्‍यक्ति तथा वर्तमान समय में तंगी भरा जीवन व्‍यतीत कर रहे अच्‍छे भविष्‍य की उम्‍मीद लेकर किस्‍मत बताने वाले के पास जाते हैं। वह किसी से अपनी इच्‍छाओं के पूरे हो जाने के बारे में दिल को तसल्‍ली देने वाले तथा धीरज बढ़ाने वाले शब्‍द सुनना चाहते हैं। कई व्‍यक्ति ऐसे ही मन बहलाने के लिए किस्‍मत बताने वाले के पास जाते हैं तथा उनकी किसी भी बात को गम्‍भीरता से नहीं लेते। बहुत से लोग उनके पास गम्‍भीर होकर तथा संजीदगी से किस्‍मत पूछने जाते हैं। ऐसे व्‍यक्तियों का पूर्व लिखित किस्‍मतों तथा भले बुरे कर्मों के फल में विश्‍वास होता है।

जादूमयी चिन्‍ह, रहस्‍यमी टेवे, कठिनाई से समझ आने वाली गिनती, समझ से बाहर ज्‍योतिष के रीति रिवाज तथा छल से भरपूर हस्‍तरेखा विद्या की दलीलें बहुत से साधारण व्‍यक्तियों को तथा कई बार अच्‍छे बुद्धिमान व्‍यक्तियों को भी भ्रम में डाल लेती हैं। 

रेडियो, टीवी, अखबारों तथा पत्रिकाओं में 'अपने मुंह मियां मिटठू बनने वाली बातें' किस्‍मत बताने के तरीकों के बारे में भोले-भाले लोगों के मन में यह विश्‍वास पैदा कर देती हैं कि इसमें जरूर ही कोई सच्‍चाई है। यह सच्‍चाई है कि प्रधानमंत्री, मंच अभिनेता, संगीतकार, विद्वान, बुद्धिजीवी तथा गैर वैज्ञानिक साईंसदान ऐसी बातों में विश्‍वास रखते हैं। कई अन्‍य इसपर इसलिए विश्‍वास करते हैं कि उसके दोस्‍त या सहयोगी किस्‍मत बताने वालों के पास जाते हैं। 

किस्‍मत बताने वाले के पास कौन जाता है?
जब जी चाहे लोग किस्‍मत बताने वालों के पास चले जाते हैं पर मेरी खोज यह दर्शाती है कि उनके पास जाने का भी खास समय होता है। दो या तीन बार व्‍यापार में घाटा पड़ जाना, बेरोजगारी, गरीबी, विवाह तथा प्रेम सम्‍बंधों में गडबड़, औलाद न होना, लम्‍बी बीमारी, दफतरी या राजनीतिक तरक्‍की न होना तथा घरेलू झगड़े आदि ऐसे मुख्‍य अवसर हैं जब लोग किस्‍मत बताने वालों के पास जाते हैं। कई बार आकर्षित करने वाले समाचार या विज्ञापन भी बड़ी गिनती में लोगों को किस्‍मत बताने वालों की ओर खींचते लेते हैं। जैसे कि अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्‍त बहुत ही ठीक किस्‍मत बताने वाला आपके शहर या इलाके में सार्वजनिक तौर पर आपके कष्‍ट दूर करने के लिए केवल दो दिन के लिए पहुंच रहा है, लाभ उठाइए। इसी प्रकार रेआ चाड़विन ने अपने लिजमोर के दौरे के समय किया था।

यदि स्‍पष्‍ट तथा सरल शब्‍दों में कहें तो किस्‍मत बताने वालों के पास अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख व्‍यक्ति ही जाते हैं। अब प्रश्‍न यह उठता है कि कौन अन्‍धविश्‍वासी है तथा कौन मूर्ख है? यहां मैं डा0 कोवूर की परिभाषा उद्धृत करना चाहूँगा:- 

'वह व्‍यक्ति जो अपने चमत्‍कारों की पड़ताल करने की आज्ञा नहीं देता धोखेबाज है। जिसमें चमत्‍कारों की पड़ताल करने का हौसला नहीं होता, वह अंधविश्‍वासी होता है। जो बिना पड़ताल किए विश्‍वास करता है वह मूर्ख होता है।' अब कोई यह पूछ सकता है कि उसका सम्‍बंध उपरोक्‍त में किसके साथ जुड़ता है।

यद्यपि मैं एक वैज्ञानिक तो नहीं हूं, पर मेरा तर्कशील मन मुझे किसी विश्‍वास को अंधश्रद्धा से स्‍वीकार करने की इजाजत नहीं देता। किसी बात पर अंतरिक्ष यात्री एडगर माइकिल, डा0 जे0बी0 रीने, हिटलर, नेपोलियन, मोरारजी देसाई, युगांडा के पूर्व प्रधानमंत्री ईदी अमीन या पोप जॉन पॉल विश्‍वास करें यह बात मुझे बिलकुल प्रभावित नहीं करती। मैं यद्यपि वैटी मिडलर, लिज टाइलर, सरले मैकलेन या रेखा की एक्टिंग पसंद करता हूँ तथा बीटल्‍ज तथा लता मंगेशकर के गीत बहुत अच्‍छे लगते हैं फिरभी मैं उन बातों की पूरी पड़ताल करने के बाद ही स्‍वीकार करूंगा जिनमें इनका विश्‍वास है। लोगों को यह बात अच्‍छी तरह अनुभव कर लेनी चाहिए कि कोई भी झूठा संकल्‍प या बहाना केवल इसलिए सच्‍चा नहीं बत जाएगा क्‍योंकि बहुसंख्‍य लोग उसमें विश्‍वास करते हैं या क्‍योंकि यह प्रथा में विश्‍वास बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है या क्‍योंकि बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी उसमें विश्‍वास करते हैं। 

इस क्षेत्र में विशेषज्ञ या विख्‍चात व्‍यक्ति आवश्‍यक नहीं कि जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी निपुण हों। किस्‍मत बताने की विद्या में अंधविश्‍वास इसलिए करना कि कोई प्रसिद्ध वैज्ञानिक, अभिनेता या संगीतकार इसमें विश्‍वास करता है उतना ही अतार्किक तथा भद्दा है, जितना कि यह मानना कि शरीर तथा आत्‍मा की शुद्धि के लिए गाय का मूत्र पीना, क्‍योंकि पूर्व प्रधानमंत्री मूत्रपान करते थे। इस प्रकार यह भी अतर्कशील विश्‍वास है कि मनुष्‍य का मांस खाने से काई व्‍यक्ति 'सुपरमैन' बन जाएगा जैसे कि युगांडा के प्रधानमंत्र ईदी अमीन भरोसा करता था। 

शैक्षिक योग्‍यता तथा समझदारी को अंधविश्‍वास से मुक्‍त होने की निशानी नहीं समझ लेना चाहिए। वास्‍तव में ऊंचे पदों पर सुशोभित अधिक पढे लिखे व्‍यक्ति भी बेहद अंधविश्‍वासी होते हैं। यहां तक कि भारत में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा लंका में श्रीमती भंडारनायके ने ज्‍योतिषियों द्वार ाबताए गये समय पर ही अपने पद की की शपथ ली। इस प्रकार के अंधविश्‍वासों से केवल तर्कशील विचार वाले व्‍यक्ति ही मुक्‍त हो सकते हैं। 

अंधविश्‍वासी व्‍यक्ति अधिक पढ़े लिखे तथा समझदार होने के बावजूद दिमागी तौर पर अंधे ही होते हैं। एक शाम को मैं क्‍लब में बैठा अपने एक डॉ0 मित्र से गपशप कर रहा था तो मैंने उसे बताया कि ज्‍योतिष की पोल खोलने तथा इसे एक धोखा साबित करने के लिए मेरा एक पुस्‍तक लिखने का इरादा है। मेरे दोस्‍त ने मुझे सलाह दी कि यदि मैं लोगों को प्रभावित करना चाहता हूँ तो पुस्‍तक लिखने से पहले मुझे पी-एच0डी0 कर लेना चाहिए। मैं तर्कशील मानसिकता वाला व्‍यक्ति होने के कारण उससे पूछे बिना न रह सका, ''क्‍या उसे किसी एक किस्‍मत बताने वाले का पता है, जिसने पी-एच0डी0 की हो। क्‍या यह आवश्‍यक है कि लेखक बनने से पहले डॉक्‍टोरेट की डिग्री ही हासिल की हो। शेक्‍सपियर, अरस्‍तु, नानक सिंह तथा जसवंत सिंह कंवल जैसे लेखक जिनकी पुस्‍तकों पर रिसर्च करके बहुत से विद्यार्थी पी-एच0डी0 कर रहे हैं स्‍वयं पी-एच0डी0 नहीं हैं। 

मेरा अपना इरादा अपने आपको इन महान हस्तियों के बराबर का समझने या अपने दोस्‍त का अपमान करने का कत्‍तई नहीं है। मैं तो अध्‍यापकों का ध्‍यान हमारी बातचीत में पैदा हुए तर्क की ओर दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ।

यह एक करूणाजनक सच्‍चाई है कि वैज्ञानिकों के संसार में बहुत ही अन्‍धविश्‍वासी तथा मूर्ख लोग हैं। असलियत यह है कि बहुत से विद्यार्थी जो विज्ञान या टेक्‍नोलॉजी विषय लेते हैं, वह इसलिए नहीं कि उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक होता है या उसमें यह कोई प्राक़तिक प्रवृत्ति होती है। वह तो केवल इसलिए लेते हैं ताकि बढिया पैसे वाली नौकरी प्राप्‍त हो सके। जो वैज्ञानिक बिना पड़ताल के ही विश्‍वास करता है वह गैर वैज्ञानिक होता है। कोई भी असली वैज्ञानिक किसी व्‍यक्ति, स्‍थान, पुस्‍तक या फिलासफी की पवित्रता के डर से खोज या छानबीन करने से झिझकेगा नहीं। वह डॉक्‍टर वैज्ञानिक कैसे कललवा सकता है, जो मरीज की बेमारी के इलाज के लिए दवाई की परची लिख कर कहता है- 'मैंने अपना कर्तव्‍य पूरा कर दिया है, अब बाकी तो ईश्‍वर के हाथों में ही है।'

कई ऐसे नकली वैज्ञानिक भी मिलते हैं, जो प्राकृतिक विज्ञान के साथ हिन्‍दु विज्ञान, ईसाई विज्ञान या इस्‍लामी विज्ञान शब्‍द जोड़ लेते हैं। यह बहुत ही कमीनी तथा सोची समझी साजिश है धर्म पर वैज्ञानिक मुलम्‍मा चढ़ाने की। ऐसे अवैज्ञानिक साइंसदान 'धार्मिक जुनून' या 'धार्मिक पागलपन' के मरीज ही होते हैं या फिर आर्थिक लाभ लेने की शरारत होती है। 
* 'ज्‍योतिष झूठ बोलता है:Mind Pollution of Fortune Telling,पुस्‍तक (तर्कभारती प्रकाशन-तर्कशील निवास, के0सी0 रोड, बरनाला-148101 पंजाब) से साभार।
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मनजीत सिंह बोपाराय आस्‍ट्रेलिया के लिजमोर शहर के निवासी हैं और पंजाब की तर्कशील सोसाइटी से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं तथा ज्‍योतिषियों के लिए 10 हजार आस्‍ट्रेलियन डॉलर की चुनौती रख चुके हैं। लेकिन उनकी इस चुनौती को स्‍वीकार करने का साहस कोई भी व्‍यक्ति नहीं जुटा सका है।

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