Thursday, January 13, 2011

हर स्थान में ऐसे मुसलमान हैं जो ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान से सतत संपर्क स्थापित किये हैं – गोलवलकर

स्वतंत्रता के बाद गोलवलकर ने अपने एक लेख ‘आंतरिक संकट’ में राष्ट्र के तीन दुश्मन गिनवाए जिनमें नंबर एक पर मुसलमानों, नंबर दो पर ईसाईयों, और नंबर तीन पर कम्युनिस्टों को रखा है।

मुसलमानों के बारे में अपने फासीवादी विचार प्रकट करते हुए गोलवलकर ने लिखा है कि:

संसार में अनेको देशों के इतिहास का यह दुखद सबक रहा है कि राष्ट्र की सुरक्षा को बाहरी आक्रान्ताओं की अपेक्षा आंतरिक विरोधी तत्व अधिक बड़ा संकट उपस्थित करते हें। दुर्भाग्यवश, जब से अंग्रेजों ने इस देश को छोड़ा है, हमारे देश में राष्ट्र की सुरक्षा का यह प्रथम पथ सतत अपेक्षित रहा है। आजतक यह कहने वाले अनेको लोग मौजूद हैं कि अब मुस्लमान समस्या बिलकुल नहीं रही है। पाकिस्तान को प्रश्रय देने वाले वह सब दंगाई तत्व सदा के लिए चले गए हैं। शेष मुसलमान हमारे देश के भक्त हैं। इस प्रकार के विश्वास के धोखे में रहना आत्मघाती होगा। इसके विपरीत पाकिस्तान के निर्माण से यह मुस्लिम विभीषिका सैकड़ों गुना बढ़ गयी है, जिसका निर्माण ही हमारे देश पर भावी आक्रमण की योजनाओ के आधार रूप में हुआ है।

गोलवलकर का निष्कर्ष यह है कि:

प्राय: हर स्थान में ऐसे मुसलमान हैं जो ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान से सतत संपर्क स्थापित किये हैं और अल्प संख्यक होने के नाते, सामान्य नागरिक के ही नहीं अपितु कुछ विशेष अधिकारों तथा विशेष अनुग्रहों का भी उपभोग करते हैं काम से काम अब हम जागें, चारो पर देखें, और बड़े-बड़े प्रमुख मुसलमानों के भी शब्द तथा कृतियों के सही तात्पर्य को समझें उनके अपने ही वक्तव्यों ने आज तथाकथित ‘राष्ट्रीय मुसलमानों’ के महानतम व्यक्तियों को भी उनके सच्चे नग्न रूप में प्रकट कर दिया है। आज भी मुस्लमान चाहे वह सरकारी उच्च पदों पर हों अथवा उसके बहार हों घोर अराष्ट्रीय सम्मेलनों में खुले रूप से भाग लेते हैं। उनके भाषणों में भी खुली अवज्ञा और विद्रोह की झंकार रहती है’

ईसाई नागरिकों के बारे में गोलवलकर का कहना है:

जहाँ तक ईसाईयों का सम्बन्ध है, उपरी तौर से देखने वाले को तो वे नितांत, निरुपद्रवी ही नहीं वरन मानवता के लिए प्रेम एवं सहानभूति के मूर्तिमान स्वरूप प्रतीत होते हैं। इसकी गतिविधियाँ केवल अधार्मिक ही नहीं, राष्ट्रविरोधी भी हैं।

इसी विषय में गोलवलकर आगे यह भी कहते हैं:

इस प्रकार की भूमिका है हमारे देश में निवास करने वाले ईसाई सज्जनों की। वह यहाँ हमारे जीवन के धार्मिक एवं सामाजिक तन्तुवों को ही नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील नहीं हैं, वरन विविध क्षेत्रों में और यदि संभव हो तो सम्पूर्ण देश में राजनीतिक सत्ता भी स्थापित करना चाहते हैं।

आजाद भारत में जो व्यक्ति या संगठन देश के नागरिकों के बारे में इस तरह का जहर उगलता है वह केवल देश को तोड़ने वालों की ही मदद कर रहा होता है।



आरएसएस को पहचानें किताब से साभार

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