Monday, April 11, 2011

अन्ना हजारे, पूंजीपति वर्ग और ब्लैकमेलिंग


सबसे पहले जनलोकपाल विधेयक के बारे में;
इस बिल को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े, वक़ील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मिलकर तैयार किया है.
भ्रष्टाचार विरोधी कानून के नाम से जाने वाले लोकपाल विधेयक की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्न हैं :

१. इस बिल में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्य में लोक आयुक्तों की नियुक्ति का प्रस्ताव है.
२. इनके कामकाज में सरकार और अफसरों का कोई दखल नहीं होगा.
३. भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल और लोक आयुक्तों को साल भर में जांच पूरी करनी होगी.
४.एक साल के अंदर आरोपियों के ख़िलाफ़ केस चलाकर क़ानूनी प्रक्रिया पूरी की जाएगी और दोषियों को सज़ा मिलेगी.
५. भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने वालों से नुकसान की भरपाई कराई जाएगी.
६. अगर कोई अफसर तय समय सीमा के भीतर काम नहीं करता तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा.
७. ग्यारह सदस्यों की एक कमेटी लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति करेगी.
८. लोकपाल और लोकायुक्तों के खिलाफ आरोप लगने पर फौरन जांच होगी.
९. जन लोकपाल विधेयक में सीवीसी और सीबीआई के एंटी करप्शन डिपार्टमेंट को आपस में मिलाने का प्रस्ताव है.
१०. साथ ही जन लोकपाल विधेयक में उन लोगों को सुरक्षा देने का प्रस्ताव है जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे.
लेकिन सवाल पैदा होता है इस विधेयक से उस नब्बे करोड़ आबादी को क्या मिलनेवाला है जो २० रु से कम पर गुजारा करती है. वैसे भी इस देश में जनता को इंसाफ देने और भरमाने के नाम पर न जाने कितने कानून है. उनका हश्र क्या हुआ है ?.
जैसा पूर्व निश्चित था, समाजसेवी अन्ना हजारे ने चार दिन से चला आ रहा अपना अनशन अंत में तोड़ दिया है । पर बड़ी चालाकी से उन्होंने कहा है कि इसे कानून में तब्दील होने तक जब भी बाधा आएगी, वे फिर से आंदोलन का झंडा उठाकर खड़े हो जाएंगे। यही नहीं, पत्रकारों को जवाब देते हुए उन्होंने कह दिया है कि अगर उनका अनशन सरकार को ब्लैकमेल करना है, तो इस तरह की बलैक्मैलिंग वे भविष्य में भी करते रहेंगे. इसके लिए अन्ना ने देश भर में दौरा कर एक जन संगठन खड़ा करने का एलान भी किया है। यानि अन्ना हजारे की बस यही है ताकत. यही नहीं हर उस आदमी का दुखांत यही होता है जो जनता पर विश्वास नहीं रखता है और स्वयं को जनता से ऊपर रखता है।
इसके अलावा प्रशांत भूषण द्वारा अपने बेटे को इस कमेटी में जगह सुरक्षित करवाने का इल्जाम भी इस नए बने भानुमती के कुनबे पर लग गया है. अगली रणनीति के बारे में उनके साथी बंट गए हैं. लेकिन इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए, यह तो मिडल क्लास का चरित्र है.
लेकिन अन्ना हजारे की साफगोई की कम से कम एक तो तारीफ करनी ही होगी की उनके आदर्श नरेंदर मोदी और नितीश कुमार है. एक तो एक समुदाय पर जुल्म-बरपा  करने के लिए कुख्यात रहा है तो दूसरे का विकास मॉडल ऐसा है जिसमें अमीरों की पांचों उँगलियाँ घी में है जबकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि नव उदारीकरण के इस मॉडल  के दूसरे छोर पर गरीबी का समुद्र ही पैदा हुआ है.
(सुने बीबीसी हिंदी से आभार सहित लिए गए उनके बयानों का नमूना)

लेकिन हमारी चिंता अन्ना हजारे नहीं है बल्कि  मध्यम वर्ग का वह बुद्धिजीवी है जिसमें किरण बेदी, बाबा रामदेव जस्टिस संतोष हेगड़े, वक़ील प्रशांत भूषण, स्वामी अग्निवेश  जैसे बुद्धिजीवी  लोग शामिल है. ऐसी बात तो है नहीं कि ये लोग यह न समझते हों कि असल मसला भ्रष्टाचार का नहीं मजदूर वर्ग के अधिशेष की लूट का  है. देश के कुल मूल्य उत्पादन में मजदूर वर्ग के हिस्से में केवल ६ प्रतिशत ही आते हैं. पता नहीं क्यों ये अन्ना हजारे जैसे लोग इस मसले पर चुप्पी  साधे रखते हैं. वैसे हम समझते है कि ऐसी कोई स्थिति नहीं है कि इन्हें किसी अल्हड बच्चे की तरह कुछ भी पता न हो. अलबता इनकी मिडल वर्ग की मजबूरियां इन्हें अपनी हदे तोड़ने नहीं देती. लेकिन इतिहास गवाह है कि इस वर्ग से भी कुछ लोग अपनी हदे तोड़ते रहे हैं और रहेंगे और मजदूर वर्ग की नयी समाजवादी क्रांतियों में अपनी आहुतियाँ देते रहेंगे .

2 comments:

  1. अली सोहराब जी,
    सबसे पहले तो हमारे इस आलेख को अपने ब्लॉग पर उचित जगह देने के लिए साधुवाद. आपके ब्लॉग पर बीबीसी हिंदी का वह हिस्सा प्ले नहीं हो रहा जिससे प्रभावित होकर हमने यह आलेख तैयार किया था. आपकी सहुलत के लिए ऑडियो लिंक प्रेषित है. https://sites.google.com/site/bigulcommunityradio2/Home/din_bhar110411.mp3?attredirects=0&d=1

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  2. बहुत बहुत सुक्रिया भाई,

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