हमारे देश में एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से भी अधिक लोग
भीख मांगकर अपना जीवन यापन करते हैं। इन भिखारियों में जहां तमाम मजबूर, गरीब, लाचार, शारीरिक रूप से असहाय व अति वृद्ध ऐसे लोग शामिल हैं जो वास्तव में दया के
पात्र होते हैं, वहीं इनमें काफी बड़ी संख्या ढोंगी, निखट्टू, हट्टे-कट्टे, आलसी व
अपराधी प्रवृति के भिखारियों की भी है जो इन्हीं के बीच अपनी पैठ बनाकर तमाम
प्रकार के अपराधिक कार्यों को अंजाम देते हैं।
हमारे देश का शायद ही कोई ऐसा रेलवे स्टेशन हो जो आज भिखारी
व भगवा वेशधारियों की गिरफ्त में न हो। देश के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे रेलवे
स्टेशन, उनके यात्री विश्राम गृह, प्लेटफार्म तथा आसपास के क्षेत्रों पर धीरे-धीरे इनका नियंत्रण बढ़ता जा
रहा है। यहां तक कि रेलवे लाईनों पर अपने जाने की प्रतीक्षा में खड़े रैक में भी इस निकृष्ट समाज के लोग बैठकर जुआ, नशा, व्यभिचार तथा अन्य प्रकार के अपराध करते रहते
हैं।
सवाल है कि क्या जीआरपी, आरपीएफ, रेलवे
अधिकारी इन अपराधी प्रवृति के भिखारियों की कारगुज़ारियों की तरफ से अपनी
आंखें मूंदे रहते हैं। कोई भी पुलिसकर्मी या अधिकारी इनके सामानों की तलाशी लेना
मुनासिब नहीं समझता। कोई इनसे किसी प्रकार के सवाल-जवाब या टोका-टाकी भी नहीं
करता। यही वजह है कि इस प्रकार के असामाजिक तत्व शराब, स्मैक
व नशीली दवाईयों वाले इंजेक्शन प्रयोग कर रेलवे स्टेशन व आस-पास के क्षेत्रों में
गालियां बकते, एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते, सरेआम पास के क्षेत्रों में बड़ी बेशर्मी के साथ शौच आदि करते तथा चारों
ओर गंदगी फैलाते दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं इनका नेटवर्क रेल यात्रियों के
सामानों की चोरी, अवैध सामानों, हथियारों
व तमाम नशीली सामग्रियों की खरीद-फरोख्त आदि से भी जुड़ा होता है।
पिछले दिनों गुजरात के सूरत शहर से इत्तेफाक से क्राईम
ब्रांच द्वारा एक भगवाधारी साधू को गिरफ्तार किया गया। उसके सामानों की तलाशी लेने
पर एक पिस्तौल तथा सात जीवित कारतूस पकड़े गए। इस गिरफ्तारी के बाद जब क्राईम
ब्रांच के लोगों ने उससे आगे पूछताछ की तथा उसके ठिकाने पर छापा मारा तो क्राईम ब्रांच
के लोगों के कान खड़े हो गए। उसकी रिहाईशगाह पर नौ पिस्तौल व 58 जीवित कारतूस पाए
गए।
उस वेशधारी ने
बताया कि दिल्ली का कोई व्यक्ति जोकि स्वयं भी इसी भेष में रहता था वह उसे हथियार
लाकर देता था। गोया इस वेश में पूरा नेटवर्क काम कर रहा था जोकि गैरकानूनी तरीके
से हथियारों को देश के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में इसी साधू वेश की आड़ में
पहुंचा रहा था। यह तो क्राईम ब्रांच की सतर्कता के चलते एक मामला उजागर हो गया।
अन्यथा यदि देश का क्राईम एवं सतर्कता विभाग अपनी पूरी चौकसी व तत्परता के साथ इन
भिखारी वेशधारियों पर नज़र रखे तो इस प्रकार के व इससे भी गंभीर और न जाने कितने
मामले सामने आ सकते हैं।
अवांछित, असामाजिक
व अपराधी प्रवृति के लोगों का इस प्रकार बेलगाम होकर रेलवे स्टेशन, रेलवे प्लेटफार्म व इसके आसपास बने रहना रेल संपत्ति की सुरक्षा के लिए
बहुत बड़ा खतरा है। रेलवे स्टेशन के आसपास
के शराब के ठेकों के सबसे पहले ग्राहक यही भिखारी व भगवा वेशधारी होते हैं। इन भिखारियों के झुंड में कई बार महिलाएं व
छोटे बच्चे भी दिखाई देते हैं। आप इस बात का अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि वह महिला
किस भिखारी की पत्नी है और यह बच्चे किस माता-पिता की संतान। भिखारियों के गैंग में यह महिलाएं कभी किसी एक
भिखारी के साथ नज़र आती हैं तो कभी किसी दूसरे भिखारी के साथ। इसी प्रकार इनके साथ
रहने वाले बच्चे भी अपने अलग-अलग अस्थाई संरक्षक भिखारियों के साथ दिखाई देते हैं।
इससे साफ ज़ाहिर होता है कि ऐसी महिलाएं व बच्चे भी संदिग्ध
होते हैं। इन भिखारियों के झुंड में तमाम
ऐसे हट्टे-कट्टे व दबंग स्वभाव के व्यक्ति भी देखे जा सकते हैं जो लड़ाकू व अपराधी
प्रवृति के होते हैं। इसमें कोई संदेह
नहीं कि ऐसे दिखाई देने वाले भिखारी वेशधारी लोगों में तमाम ऐसे भी हैं जोकि
अपने-अपने क्षेत्रों में अपराध कर तथा पुलिस व कानून की आंखों में धूल झोंककर साधू
व भिखारियों का वेश धारणा कर अपनी जान बचाए फिरते हैं।
रेलवे प्लेटफार्म
के प्रतीक्षालयों,स्नानगृहों व
शौचालयों पर भी इनका नियंत्रण रहता है।
प्लेटफार्म पर पीने के पानी की लगी टूंटी पर यह भिखारी कब्ज़ा जमा कर नहाते
व कपड़े धोते रहते हैं। एक सीधी-सादा व शरीफ यात्री इनकी हरकतों को देखकर स्वयं
बिना पानी पिए आगे बढ़ जाता है। इसी प्रकार प्लेटफार्म पर रखी बैंच जोकि यात्रियों
की सुविधाओं के लिए रेल विभाग लगाता है उस पर यह मुफ्तखोर भिखारी लेटे-बैठे व
कब्ज़ा जमाए रहते हैं।
खासतौर पर उन बेंच पर तो सबसे पहले कब्ज़ा करते हैं जिनके
ऊपर पंखे लगे होते हैं। इसके अतिरिक्त रेलगाडिय़ों में बिना टिकट यात्रा करना, ट्रेन
के डिब्बों के बीच में रास्ते में बेशर्मों की तरह बैठना व अपना सामान रखना,
बिना टिकट यात्रा करने के बावजूद स्वयं सीटों पर कब्ज़ा जमाना इनकी
प्रवृति में शामिल है। इन अवांछित लोगों
से आप सीट छोडऩे को कहें फिर यह यात्री को अपमानित करने व उसे गाली देने में भी
देर नहीं लगाते.
प्रशासन को ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटना चाहिए तथा इन्हें
नियंत्रित रखने व इनपर गहरी नज़र रखने के प्रयास करने चाहिए। इनको बेलगाम छोडऩे व
इनकी गतिविधियों को नज़र अंदाज़ करने का अर्थ है देश में अपराधों को और अधिक
बढ़ावा देना। इन्हें रेलवे स्टेशन सहित सभी सरकारी भवनों से दूर रहने के लिए बाध्य
करना चाहिए। इनके सामानों की भी समय-समय पर तलाशी ली जानी चाहिए। देश के सभी रेलवे
स्टेशन, प्लेटफार्म व यात्री विश्रामग्रहों को
भिखारियों से पूरी तरह मुक्त कराया जाना चाहिए।
ट्रेन में उनके बिना टिकट घूमने-फिरने की आज़ादी को भी समाप्त किए जाने की
ज़रूरत है।
गौरतलब है कि भिखारियों या भगवा वेशधारियों से टिकट
निरीक्षक द्वारा टिकट के विषय में न पूछे जाने की चर्चा आज पूरे देश में इतनी आम
हो चुकी है कि तमाम निखट्टू व नकारा बिना टिकट रेल यात्रा करने के 'शौक़ीन' लोग भी भगवा
वस्त्रों को रेल यात्रा हेतु एक वर्दी अथवा फ्री रेल पास के रूप में प्रयोग करने
लगे हैं। खासतौर पर धार्मिक स्थलों की ओर जाने वाली गाडिय़ों में यह ज़रूर देखा जा
सकता है। यदि भगवा अथवा भिखारी वेशधारियों की इस प्रकार की बेलगाम व अनियंत्रित
अपराधी गतिविधियों पर नज़र नहीं रखी गई तो निश्चित रूप से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह वर्ग
कभी भी बड़ा खतरा बन सकता है।
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