एक ही सवाल, कहाँ
हूँ, कैसा हूँ, क्या कर रहा हूँ,
हर सवाल का एक ही जवाब- जहां था वहीं हूँ, काम
ख़त्म हो चुका मगर मैं ज़िंदा हूँ क्यों... जो कर सकता था किया, अल्लाह जो काम लेना चाहता था उसने लिया अब क्यों ज़िंदा हूँ, समझ में नहीं आता। अपने लिए कुछ रोज़ जीने की एक ज़माने से ख़ाहिश थी,
कभी फ़ुर्सत ही ना मिली, शायद मौत से पहले वो ज़िंदगी
तलाश कर रहा हूँ, मेरे क़लम से निकलने वाला एक एक लफ़्ज़ हर रोज़
सौ नए दुश्मन बनाता है, दोस्त बहुत हैं पर ना उनको मेरा पता मालूम,
ना मुझे उनका.... पर मेरे सब दुश्मनों को मेरा पता मालूम है,
तहरीक को नाकाम बनाने का तरीक़ा मालूम है, वो हर
रोज़ इस पर काम करते हैं और आप जो बहुत दर्दमंद हैं वो बातें कर लेते हैं, बाक़ी इतना भी नहीं, बीस करोड़ मुसलमानों की तादाद जम्हूरी
मुल्क में बहुत अहमियत रखती है, पर अपनी अहमियत खो चुके हो आप,
बर्मा (म्यानमार) में हज़ारों मुसलमान क़त्ल कर दिए गए, बातें करने और अफ़सोस ज़ाहिर करने के सिवा क्या किया आपने, जिनको वोट दिया वो आप के वोट की ताक़त पर हुकूमत करते हैं, क्या मिले उनसे, क्या मजबूर किया उनको इंसाफ़ की आवाज़
बुलंद करने के लिए, जो आपके नेता हैं, मुसलमान
हैं, मालूम किया उनसे, क्या किया इस सिलसिले
में। मैं लिखता क्यों नहीं, बोलता क्यों नहीं, क्या हो जाएगा मेरे लिखने और बोलने से, आप मज़लूमीन को
इंसाफ़ दिलाने के लिए एक प्लेटफार्म पर खड़े हो जाऐंगे, नहीं आप
ऐसा नहीं करेंगे, आसमान से तारे तोड़ कर लाने की ख़्वाहिश रखेंगे
लेकिन घर की दहलीज़ पर क़दम रखना नहीं चाहेंगे, फिर क्या करेंगे,
मेरा लिखा पढ़ कर या मेरी तक़रीर सुन कर, मेरे
पास गीत नहीं हैं आप का दिल बहलाने के लिए, दर्द भरी दास्तान
है........
aziz burny bhai
ReplyDeleteassalam alekum
aap bilkul sahe farma rahe hen musalmaan lakhon ke tadad me ikathe to ho sakte hen magar sirf taqreer ke had tak insaaf mangne ke liye jo jaddojehad karne padege uske liye time kon dega
qudsia anjum