अभी अभी मध्य प्रदेश से लौटा हूँ ! वहाँ हरदा जिले के खरदना
गाँव वालों के एक सत्याग्रह में शामिल होने गया था ! गाँव वालों के साथ करीब
अट्ठारह घंटे पानी में खड़ा रहा !
गाँव वाले तो पिछले चौदह दिन से पानी में ही खड़े थे ! कारण
यह था कि पहले तो गाँव वालों से बात किये बिना ही सरकारी अफसरों और नेताओं ने
इंदिरा सागर नाम का एक बड़ा बाँध बना दिया ! फिर इस साल लोगों को ज़मीन के बदले
ज़मीन दिए बिना ही सरकार ने बाँध में पानी भर दिया ! लोगों के खेत और फसल डूब गयी
!ज़मीन डूब गयी तो अब लोग क्या करें ?बच्चों को क्या खिलाएं ? लोगों ने कहा इस से तो
अच्छा है कि सरकार हमारी ज़मीन के साथ साथ हमें भी डूबा दे ! सरकार की इस मनमर्जी
के खिलाफ लोग पानी में जाकर खड़े हो गये !
देश भर में किसानों के इस विरोध प्रदर्शन के तरीके पर बड़ा
आकर्षण पैदा हुआ ! चारों ओर सरकार की आलोचना होने लगी ! सरकार घबरा गयी ! लेकिन
सरकार में बैठे लोग खुद को बहुत ताकतवर मानते हैं ! इसलिए सरकार ने पानी में खड़े
महिलाओं और पुरुषों को ताकत का इस्तेमाल कर के निकालने का फैसला किया ! सरकार ने
पानी में क़ानून की एक सौ चवालीस धारा लागू कर दी ! शायद भारत में पहली बार पानी
में यह धारा लागू की गयी थी ! अगले दिन सुबह - सुबह पांच बजे लोगों पर पुलिस ने
हमला शुरू किया ! छोटे - छोटे बच्चों के साथ घरों में सोयी हुई महिलाओं और बूढों
को पुलिस ने घरों के दरवाज़े तोड़ कर बाहर खींच कर निकालना शुरू किया ! इसके बाद
पानी में खड़े लोगों को बाहर निकालने के लिये पुलिस ने पानी में खड़े लोगों पर
हमला किया ! पुलिस के हमलों से बचने के लिये लोग ओर ज्यादा गहरे पानी में चले गये
! पुलिस ने मोटर बोटों में बैठ कर लोगों के चारों तरफ घेरा डाल दिया ! इसके बाद
पुलिस कमांडो ने पानी में घुस कर सभी सत्याग्रहियों को खींच कर बाहर निकाला !
लोगों ने हांलाकि कोई अपराध नहीं किया था ! लोग तो अपने ही
खेतों में खड़े थे ! सरकार ने उनके खेत में बिना बताये पानी भर दिया था ! किसानो
की मेहनत से लगाई गयी सोयाबीन की फसल डूब गयी ! एक किसान मुझे रोते हुए बता रहा था
कि भाई जी मैंने बीस हज़ार रुपया क़र्ज़ लेकर सोयाबीन की फसल बोई थी ! अब मैं
क़र्ज़ कहाँ से चुकाऊंगा ? अपने बच्चों
को कहाँ से खिलाऊंगा ?
सरकार ने लोगों के विरोध को कुचलने के लिये पूरे गाँव को
उजाड़ने की तैयारी कर ली ! गाँव की बिजली काट दी गयी ! पीने के पानी के हैण्ड पम्प
उखाड़ने की कोशिश की जाने लगी ! सत्याग्रह करने वाले गाँव वालों के घरों को तोड़ने
के लिये सरकारी बुलडोज़र गाँव में आ गये !
मुझे यह सब देख कर दो साल पहले बस्तर में अपने आश्रम को
उजाड़े जाने के दृश्य याद आने लगे ! तब भी सरकार ने पहले बिजली काटी थी फिर पीने
के पानी के हैंडपंप उखाड़े थे और फिर सरकारी बुलडोजरों ने आश्रम में बने घरों को
कुचल दिया था !
गाँव वालों के साथ- साथ जब पुलिस वाले मुझे घसीट रहे थे !
बच्चे रो रहे थे ! किसान औरतें और पुरुष नारे लगा रहे थे ! मैं उत्साह और आशा के
भावों से भरा हुआ था ! क्योंकि इन गावों के कमज़ोर से दिखने वाले लोगों ने
शक्तिशाली राज्य को इतना झकझोर दिया था ! कि किसी की परवाह ना करने वाला राज्य इन
पर हमला करने पर आमादा हो गया था !
शायद कुछ ही वर्षों में इसी तरह से हम इस देश में करोड़ों
गरीबों से उनकी ज़मीने ऐसे ही पीट पीट कर छीन लेगे ! गरीब इसी तरह से विरोध करेंगे
! और हम ऐसे ही पुलिस से गरीबों को पिटवा कर उनकी ज़मीने छीन लेंगे ! गरीबों से
ज़मीने छीन कर हम अपने लिये हाइवे , शापिंग माल , हवाई अड्डे , बाँध
, बिजलीघर , फैक्ट्री बनायेंगे और अपना विकास
करेंगे !
हम ताकतवर हैं इसलिए हम अपनी मर्जी चलाएंगे ? ये गाँव वाले कमज़ोर हैं इसलिए इनकी बात
सुनी भी नहीं जायेगी ? सही वो माना जाएगा जो ताकतवर है
? तर्क की कोई ज़रुरत नहीं है ? बातचीत की कोई
गुंजाइश ही नहीं है ?
और इस पर तुर्रा यह कि हम दावा भी कर रहे हैं कि अब हम अधिक
सभ्य हो रहे हैं ! अब हम अधिक लोकतान्त्रिक हो रहे हैं ! और अब हमारा समाज अधिक
अहिंसक बन रहा है !
हम किसे धोखा दे रहे हैं ? खुद को ही ना ?
करोड़ों लोगों की ज़मीने ताकत के दम पर छीनना, लोगों पर बर्बर हमले करना , फिर उनसे बात भी ना करना, उनकी तरफ देखने की ज़हमत
भी ना करना ! कब तक इसे ही हम राज करने का तरीका बनाये रख पायेंगे ? क्या हमारी यह छीन झपट और क्रूरता करोड़ों गरीबों के दिलों में कभी कोई
क्रोध पैदा नहीं कर पायेगा ? क्या हमें लगता है कि ये गरीब
ऐसे ही अपनी ज़मीने सौंप कर चुपचाप मर जायेगे या रिक्शे वाले या मजदूर बन जायेंगे
? या ये लोग भीख मांग कर जी लेंगे और इनकी बीबी और बेटियाँ वेश्या
बन कर परिवार का पेट पाल ही लेंगी ? और इन लोगों की गरीबी के
कारण हमें सस्ते मजदूर मिलते रहेंगे ?
दुनिया में हर इंसान जब पैदा होता है तो ज़मीन , पानी , हवा ,
धुप , खाना , कपडा और
मकान पर उसका हक जन्मजात और बराबर का होता है ! और किसी भी इंसान को उसके इस
कुदरती हक से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि इनके बिना वह मर जाएगा !
इसलिए अगर कोई व्यक्ति या सरकार किसी भी मनुष्य से उसके यह
अधिकार छीनती है तो छीनने का यह काम प्रकृति के विरुद्ध है , समाज के विरुद्ध है , संविधान के विरुद्ध है और सभ्यता के विरुद्ध है !
हम रोज़ लाखों लोगों से उनकी ज़मीने, आवास , भोजन और पानी
का हक छीन रहे हैं ! और इसे ही हम विकास कह रहे हैं ! सभ्यता कह रहे हैं !
लोकतंत्र कह रहे हैं !
यदि किसी व्यक्ति के पास अनाज , कपड़ा ,मकान
, कपडा , दूध दही , एकत्रित
करने की शक्ति आ जाती है तो हम उसे विकसित व्यक्ति कहते है ! भले ही वह व्यक्ति
अनाज का एक दाना भी ना उगाता हो , मकान ना बना सकता हो
, खदान से सोना ना खोद सकता हो ! गाय ना चराता हो ! अर्थात वह
संपत्ति का निर्माण तो ना करता हो परन्तु उसके पास संपत्ति को एकत्र करने की
क्षमता होने से ही हम उसे विकसित व्यक्ति कहते हैं !
बिना उत्पादन किये ही उत्पाद को एकत्र कर सकने की क्षमता
प्राप्त कर लेना किसी विशेष आर्थिक प्रणाली के द्वारा ही संभव है ! और ऐसी
अन्यायपूर्ण आर्थिक प्रणाली समाज में लागू होना किसी राजनैतिक प्रणाली के संरक्षण
के बिना संभव नहीं है !
इस प्रकार के अनुत्पादक व्यक्तियों या या व्यक्तियों के
वर्ग को उत्पाद पर कब्ज़ा कर लेने को जायज़ मानने वाली राजनैतिक प्रणाली उत्पादकों
की अपनी प्रणाली तो नहीं ही हो सकती !
इस प्रकार की अव्यवहारिक ,अवैज्ञानिक और अतार्किक और शोषणकारी आर्थिक और राजनैतिक प्रणाली मात्र
हथियारों के दम पर ही टिकी रह सकती है और चल सकती है !
इसलिए अधिक विकसित वर्गों को अधिक हथियारों , अधिक सैनिकों और अधिक जेलों की आवश्यकता
पड़ती है ! ताकि इस कृत्रिम राजनैतिक प्रणाली पर प्रश्न खड़े करने वालों को और इस
प्रणाली को बदलने की कोशिश करने वालों को कुचला जा सके !
बिन मेहनत के हर चीज़ का मालिक बन बैठे हुए वर्ग के लोग
अपनी इस लूट की पोल खुल जाने से डरते हैं ! और इसलिए यह लोग इस प्रणाली को विश्व
की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली सिद्ध करने की कोशिश करते हैं ! इस प्रणाली को यह लुटेरा
वर्ग लोकतंत्र कहता है ! इसे पवित्र सिद्ध करने की कोशिश करता है ! इसके लिये धर्म , महापुरुष , फ़िल्मी
सितारों , मशहूर खिलाड़ियों और सारे पवित्र प्रतीकों को अपने
पक्ष में दिखाता है !
सारी दुनिया में अब यह लुटेरी प्रणाली सवालों के घेरे में आ
रही है ! इस प्रणाली के कारण समाज में हिंसा बढ़ रही है ! हम इसका कारण नहीं समझ
रहे और इस हिंसा को पुलिस के दम पर कुचलने की असफल कोशिश कर रहे हैं ! देखना यह है
कि यह लूट अब और कितने दिन तक अपने को हथियारों के दम पर टिका कर रख पायेगी ?
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