Monday, October 22, 2012

अगर सर्वोच्च न्यायलय क़ानून का पालन नहीं करेगा तो न्याय पाने का क्या रास्ता बचेगा?


कानून के मुताबिक अगर कहीं कोई जुर्म हो तो एक नागरिक को उसकी जानकारी तुरंत पुलिस को देनी चाहिए ! क़ानून आगे कहता है की पुलिस अधिकारी तुरंत उस नागरिक द्वारा दी गयी सूचना को लिखेगा ! यही सूचना ऍफ़आईआर मानी जायेगी ! अगर वहाँ कोई पुलिस अधिकारी नहीं है या वह ऍफ़आईआर लिखने से इनकार  करता है तो वह नागरिक जुर्म की सूचना निकट के मजिस्ट्रेट को देगा ! मजिस्ट्रेट तुरंत पुलिस को इस सूचना से अवगत कराएगा और उसे मामले की जांच कर के अदालत के सामने पेश करने के लिए कहेगा !

अगर कोई मेरा हाथ तोड़ दे ! और मैं इसकी सूचना किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दूं तो वह एक डाक्टर से मेरे हाथ की जांच करवाएंगे ! जांच में अगर मेरे हाथ की हड्डी टूटी हुई होगी तो जिस पर मैंने इलज़ाम लगाया है उसे गिरफ्तार किया जाएगा और उसे अदालत के सामने पेश किया जायेगा !

सोनी सोरी ने नाम लेकर कहा की अंकित गर्ग जो की दंतेवाडा का एस पी है उसने आठ अक्टूबर की रात को दंतेवाडा थाने के नए भवन में मुझे निवस्त्र किया , मुझे पैर के तलवों में बिजली का करेंट लगाया और मेरे शरीर के भीतर यह सब भर दिया ! सुप्रीम कोर्ट ने कोलकता मेडिकल कालेज से जांच का आदेश दिया ! जांच में सोनी सोरी के आरोप सही पाए गए ! डाक्टरों ने सोनी सोरी के गुप्तांगों से पत्थर के टुकड़े निकाल कर सर्वोच्च न्यायलय को अपनी रिपोर्ट के साथ भेज दिए ! इसके अलावा दंतेवाडा अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट में भी सोनी के तलवों में काले निशान दर्ज़ हैं इसलिए सोनी के आरोपों की पुष्टि दो दो अस्पतालों ने कर दी !

इसके बाद कानूनन जज को एस पी अंकित गर्ग को गिरफ्तार करने और और उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश देना चाहिए था ! 

सोनी सोरी के साथ एक जुर्म हुआ ! उसने देश के सबसे बड़े मजिस्ट्रेट अर्थात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को इसके बारे में बताया ! जज ने डाक्टर से  की इसकी जांच करने के लिए कहा ! डाक्टर ने सोनी सोरी के इल्जामों को सच पाया ! जज के पास जुर्म के सम्बन्ध में और इस सूचना के बारे में विश्वास करने के काफी पक्के सबूत भी आ गए हैं की उसके सामने की गयी शिकायत में आगे जांच किये जाने की ज़रुरत है ! लेकिन आज तक जज ने इस मामले में आगे जांच करने का आदेश क्यों नहीं दिया ?

हमें कोई यह समझाए की इस देश का सर्वोच्च न्यायलय अगर बुनियादी क़ानून का पालन नहीं करेगा तो लोगों के पास न्याय पाने का क्या रास्ता बचेगा ?
क्या क़ानून में यह देख कर न्याय किया जाता है की सामने कौन खड़ा है ? नहीं ! क़ानून की आँखों पर पट्टी बंधी रहती है ! क़ानून के हाथ में तराजू रहता है जिसमे वह सबूतों को तौलता है और इन्साफ कर देता है !

क्या सोनी की जगह कोई दिल्ली की बड़ी जाति की लडकी के गुप्तांगों में कोई पुलिस आफिसर ऐसे ही पत्थर भर देता तो सुप्रीम कोर्ट का यही रुख रहता जो उसका सोनी सोरी के प्रति है ? क्या मीडिया ऐसे ही खामोशी अख्तियार करता जैसे अभी है ? क्या महिला आयोग तब भी ऐसे ही चुप होकर केस बंद कर के बैठ जाता

अगर हम आदिवासियों के साथ ऐसे ही अन्याय करने के मामले में एकमत हो गए हैं ! अगर हमने तय ही कर लिया है की हमारी अदालत, सरकार , मीडिया आदिवासियों के लिए नहीं है ! उनकी महिलाओं के साथ हमारा यह व्यवहार हमें स्वीकार है तो माफ़ कीजियेगा अपने आज़ाद मुल्क होने और इस देश के सब लोगों को सामान मानने के अपने दावे के झूठ को स्वीकार कीजिये और मानिए की हम अभी भी एक राष्ट्र नहीं बने हैं ! नागरिकों की समानता अभी हमारे मन और व्यवहार में नहीं है और हम जानते ही नहीं हैं की असल में देश किसे कहते हैं और देश भक्ति क्या होती है !
झंडे की जय और सेना की जय ही देश भक्ति नही होती बल्कि यह उससे कहीं ज्यादा बड़ी ज़िम्मेदारी का नाम है !देश का मतलब पुलिस सेना और झंडे के साथ साथ यहाँ के करोड़ों लोग भी होते हैं ! और ये करोड़ों लोग हैं दलित , आदिवासी ,मजदूर , मेहनतकश औरतें और गाँव वाले  !

मुझे कहने दीजिये की अपने देश के लोगों के बारे में हमारी यह सोच इस देश की एकता के लिए असली खतरा है !

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