याकूब हमारा हीरो नहीं राज्य प्रायोजित दंगों के खिलाफ एक प्रतीक है याकूब मेमन के बहाने सोशल मीडिया पर पिछले तीन चार दिनों से तर्क कुतर्क गाली गलौच का जो दौर चल रहा है उसके बीच में मुझे फेसबुक ने 24 घंटे के लिए ब्लाक कर दिया. अब न तो मैं अपने फेसबुक वाल पर कुछ लिख सकता हूँ न तो किसी दूसरे के लिखे का जवाब दे सकता हूँ.
मैंने परसों अपनी एक पोस्ट में लिखा था की ‘याकूब मेमन हमारे दिलों में जिंदा रहेगा, वह अन्याय के खिलाफ प्रतीक के तौर पर पहचाना जाएगा.’ जब मैंने यह लिखा था तब मैंने यह बिलकुल नहीं लिखा था कि ‘मुसलमान याकूब मेमन को मुसलमानों के खिलाफ हो रहे सरकारी अत्याचार के विरूद्ध प्रतीक के तौर पर स्थापित कर दिया जाए.’ लेकिन मुझमें खोज खोज कर फिरकापरस्ती तलाश करने वाले लोगों ने यह समझा कि 900 लोगों की सरकारी ह्त्या के बदले के स्वरुप किये गए बम ब्लास्ट में मैं याकूब मेमन को मुसलमानों का हीरो बनाना चाहता हूँ.
कोई मुसलमान अपने ऊपर हुए अत्याचार और नाइंसाफी की लड़ाई लड़ने के बाद फूलन देवी जैसी स्वीकार्यता क्यों नहीं प्राप्त कर पाता. क्यों किसी मुसलमान को उसके कौम के भरोसे और सहारे छोड़ दिया जाता है. एपीजे अब्दुल कलाम की विरासत पर सबने अपना हक़ जताया तो याकूब मेमन और उसके परिवार के लोगों द्वारा लिए गए प्रतिशोध के पक्ष में हम क्यों नहीं खड़े हुए?
मुझे पता है यह बेहद बचकाना सवाल है क्योंकि याकूब और उसके परिवार ने 250 से ज्यादा लोगों की जान ली थी, हो सकता है जो लोग मारे गए उनमें से कुछ दंगों में शामिल रहे हों लेकिन ऐसे बहुत रहे होंगे जो मासूम और बेकसूर थे. इनकी हत्याओं और बम्बई ब्लास्ट को कभी भी जस्टिफाय नहीं किया जा सकता. लेकिन, अहम पहलू इसमें यह आता है कि बम ब्लास्ट न होता तो बम्बई में अब तक कितने दंगे हो चुके होते ? श्री कृष्ण जांच कमीशन भी यह कहता है कि ब्लास्ट के बाद सरकार और प्रशासन के अलावा राजनीतिक गुंडागर्दी जो मुसलमानों के खिलाफ हुआ करती थी उसमें कमी आई है. उसने यह नहीं लिखा है कि हिन्दुओं और मुसलमानों में दूरियां बढ़ी है. क्या आप उन्हें हिन्दू मानते हैं जिन्होंने बेवजह गरीब मुसलमानों,औरतों,बुजुर्गों और बच्चों को जिंदा जला डाला. क्या आप उन्हें अपने जैसा मानते हैं? अगर नहीं तो फिर हिन्दू बनाम मुसलमान क्यों बना रहे हैं मुद्दे को. क्रूरतम हिंसा की हदे लांघने वालों की इतनी फ़िक्र क्यों कर रहे हैं? कहीं सरकार और राजनीतिक पार्टियाँ आपको मोहरा तो नहीं बना रही है याकूब मामलें में, शायद बना चुकी हैं.
याकूब और उसके परिवार ने बंबई को पहले तबाह नहीं किया था,उन पर शिव सेना और अन्य राजनीतिक दलों ने यह तबाही थोपी थी. मुख्यधारा की मीडिया और विमर्श करने वालों के बीच से बंबई दंगे नदारद हैं, बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के बाद देश भर में सुनियोजित मुस्लिम नरसंहार पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. न्यायपालिका को आश्वासन दे कर उसका भरोसा तोड़ा गया था, कहा तो यह भी जाता है कि बाबरी विध्वंस के वक्त पूरा देश एक तरफ था और मुसलमान एवं वामपंथी एक तरफ. क्या बहुजन और क्या सवर्ण, हर किसी के भीतर मुसलमानों के खिलाफ नफरत भर दी गई थी और फिर धीरे धीरे जिन लोगों ने बाबरी गिराई और कत्लेआम किये उनकी सच्चाई सामने आने लगी तो लोग खुद ही उनका साथ छोड़ कर भागने लगे. लेकिन नहीं बदला हाल मुसलमानों पर अत्याचार का. राजनीतिक रूप से उन्हें डिबार कर दिया गया है वरना क्यों न कोई पार्टी या राज्य अपने स्तर से राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के हत्यारे को बचाने के जैसा कोई बिल याकूब मेमन के लिए भी पास करती.
हर मोर्चे पर अकेले मुसलामानों के लिए लोग कहते हैं की उनका तुष्टिकरण होता है, उन्हें ज्यादा अवसर दिए जाते हैं, वो हिंसक होते हैं, इनका धर्म भारत देश को ख़त्म कर देगा. बताइए, हर रोज़ पिटते हैं मुसलमान और उन्ही का डर भी दिखाया जाता है. कहीं और होता है दुनिया में ऐसा ? दंगें हों तो उसमे मारे जाते हैं,दंगे के बाद बर्बादी में रहते हैं. जो दंगों से बच गए वे कई तरह के भेदभाव और शक से गुजरते हैं. ये भी कोई जीना है महराज? भारत के मुसलमान तो बहुत पीछे हैं हिंसा और अराजकता में, सरकारों द्वारा उनका दमन किया गया है कि वे कभी सोच भी नहीं पाते की खून का बदला खून से ले लें. मेमन परिवार ने लिया और उसकी सज़ा भोग ली.
जो भी मुसलमान प्रायोजित हिंसा के खिलाफ कभी हिंसक होना चाहेगा उसे मैं पहले से बता दूं की ऐसा वह कभी नहीं करेगा क्योंकि उसके बाद उसे न तो हिन्दुओं की तरह राजनीतिक शाबाशी मिलेगी और न तो अदालत से जमानत. हिंसा के रास्ते पर गया मुसलमान, भारतीय कानून के लिए सबसे आसान मुजरिम होगा जिसके गले में सुबह के सात बजे फांसी का फंदा डाल दिया जाएगा. इसलिए किसी भी तरह की हिंसा हो, दंगा हो,फर्जी मुठभेड़ हो खुद के हाथ पैर बाँध, मुंह सिल एक किनारे बैठ जाने में ही भलाई है क्योंकि आप के लिए प्रतिशोध स्वरुप या फिर आत्मरक्षा जैसे शब्द प्रतिबंधित हैं और होने भी चाहिए. प्रतिशोध सिर्फ नक्सली ले सकते हैं और उन्हें जस्टिफाय करने वाले ब्राह्मण वामपंथी,आपकी हिंसा पर सैकड़ों सवाल एवं लानत भेजने को बैठे हुए हैं.
एक अच्छी और प्यारी सोसायटी में इन बकवास और बुरे शब्दों या क्रियाओं का भला क्या काम? आप पिटते रहिए, समाज की रंगाई पोताई चलती रहेगी जिस रोज़ आपने पीटने वाले को पीटा उस रोज़ आप समाज के लिए सबसे बड़े ‘थ्रेट’ के तौर पर पहचाने जाएंगे.
सरकार की मिलीभगत से सुनियोजित दंगों से खुद का बचाव करना भी यदि अपराध है तो याकूब मेमन इस दुनिया का सबसे दुर्दांत और खूंख्वार इंसान था जिसका मर जाना ही सबसे अच्छी बात है. न्यायपालिका में पूरा यकीन जताते हुए मैं सुप्रीम कोर्ट के जज अनिल आर दवे साहब के उस कथन से सहमत हूँ जिसे उन्होंने मनुस्मृति से निकाला था कि, ‘राजा यदि आँखें लाल करके सजा नहीं देगा तो पूरा पाप राजा पर आएगा.’ लोकतंत्र बचा ही कहाँ है? राजतंत्र है तो फैसले भी उसी तरह से आएंगे.
दवे साहब वहीँ हैं जिन्होंने कहा था यदि मैं तानाशाह होता तो पहली कक्षा से बच्चों को गीता पढ़वाता. खैर, याकूब मर गया क्योंकि उसे मरना था. उसने उस अपराध में शायद हिस्सेदारी निभाई थी जिसे अंजाम उसके भाई ने दिया था. हम उसे किस रूप में याद रखें यह हमारे विवेक पर निर्भर करने से अधिक परिस्थितियों पर निर्भर ज्यादा करती हैं. बहुसंख्यक चेतना को संतुष्ट करने के लिए या फिर यूं कहें किसी मुसलमान की सस्ती जान से बहे खून से बहुसंख्यक आबादी की प्यास बुझाने के लिए कोई भी फैसला न्यायलय लेता है तो मैं उसके समर्थन में रहूँगा. इस देश में अन्याय रत्ती भर नहीं होता जिन्हें ऐसा लगता है वे सब याकूब मेमन को सुनियोजित सरकारी दंगों के विरोध का प्रतीक मान लें या फिर पाकिस्तान चले जाए. देशद्रोशी कहीं के.
इस हिंसा प्रतिहिंसा के बीच मैं याक़ूब के उस पहलू को उसके साथ दफ्न करने की अपील सबसे करना चाहता हूं जिसमें बंबई ब्लॉस्ट और उसमें मारे गए बेकसूर लोगों का जिक्र आता है। मैं याक़ूब मेमन के साथ उसके उस पक्ष को फांसी पर लटका देने की सलाह सबको देता हूं जिसकी वजह से उसने और उसके परिवार ने बंबई में ब्लास्ट करवाए। और मैं उस याकूब को जिंदा रखने की अपील करता हूं जिसने अपने दोस्त चेतन मेहता के साथ ‘मेहता एंड मेमन’ नाम से फर्म की शुरूआत की थी। उस मेमन को बचाए रखने को कहूंगा जिसने जेल में रहते हुए डबल एम ए किया और उस मेमन को बचाए रखने की पूरी कोशिश करूंगा जिसने भारत और भारतीय कानून में पूरा भरोसा जताते हुए अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से वापस मातृभूमि तक चला आया। आप उसके बुरे पहलुओं को हीरों कभी न बनाना, अपराधी तो वह था ही, हमें अपराध से घृणा होनी चाहिए अपराधी से नहीं। इन सबके अतिरिक्त मैं फांसी जैसे मनुकालीन सज़ा पर रोक की मांग करता हूं। साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत उनके लिए भी जिनके ऊपर गुजरात रचने की साजिश का आरोप है। मेमन मेरा हीरो नहीं, उसके हीरोइज्म को मुझ पर मत थोपिए।
Aapke tarq ke hisaab se to gujraat dange hue kyunki hinduwo par atyachaar hua aur dange ke baad dekhiye kaise shanti ho gyi...matlab dange bomb blast hone chahiye...par aapko bhi pta hai...20 to hum hi padenge...100 cr. jo thahre
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