समाज सड़ चुका है। विकास झूठ है, फरेब है। हाशिये के लोग इसकी सड़ांध झेलने
को मजबूर हैं। महिलाएं और वो भी दलित हैं तो और भयानक शोषण और अत्याचार की शिकार
हैं। विकास और सुशासन के नारों के बीच हाशिये के लोग लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
वहीं बिहार का घमंडी राजा नीतीश राजसूय यज्ञ कर रहा है और महिलाएं सामंतवादियों के
चंगुल में नरक भोग रही हैं। उन पर लगातार हमले हो रहे हैं। बिहार में अभी हाल के
दिनों में लगातार महिलाओं और दलितों के खिलाफ हमले बढ़े हैं। दूर दराज ही नहीं,
बल्कि राजधानी और इससे सटे इलाकों में लगातार लड़कियों के रेप और
हत्या जैसे मामले सामने आये हैं। अभी रोंगटे खड़े कर देने वाला ताजा मामला बिहार
में राजधानी पटना से सटे मनेर थाने के छितनावां गांव का है। दबंगों ने क्रूरता की
हद पार करते हुए रविवार 21 अक्टूबर की देर रात घर में घुस कर दो दलित बहनों चंचल
और सोनम को तेजाब डालकर बुरी तरह जला दिया। कारण वही सामंतवादी पुरुष ऐंठन। वही
सामंतवादी सोच कि गरीब, दलित और स्त्री होकर ये सामंतवादी
पुरुष के शोषण का विरोध कैसे कर सकती हैं? कैसे नहीं तैयार
होगी शोषित होने को स्त्री? ये सामंतवादी ताकतें इतनी
प्रभावशाली हो गयी हैं कि सरकार इनके इशारों पर चल रही है। और जैसे-जैसे हाशिये का
समाज सशक्त होने की कोशिश कर रहा है, सामंतवादी ताकतों का
दमन बढ़ता जा रहा है।
मीडिया में भी खबरें आयी हैं कि प्रेम और शादी से इनकार
करने पर दोनों दलित बहनों पर मनचलों ने तेजाब डाला है। बात साफ है कि यह वही
पुरानी सामंतवादी सोच काम कर रही है कि स्त्री और वो भी गरीब और दलित कैसे पुरुष
को अस्वीकार करने की हिम्मत जुटा रही है। तेजाब की शिकार चंचल को दबंग लगातार
छेड़ते रहते थे। बाजार या पढ़ने आते-जाते वे लगातार उसे परेशान कर रहे थे। दबंगों
के डर से वह चुप रह परिजनों को बताने से बचती रही, लेकिन दबंगों के सामने घुटने भी नहीं टेके। वे लगातार उसे बुरे परिणाम
भुगतने की धमकी भी देते रहे। पर चंचल झुकी नहीं। हाल ये हुआ कि इन सामंतवादी
पुरुषों के अहम को ठेस लगी और इन्होंने चंचल को अपनी क्रूरता का शिकार बना डाला।
देर रात घर में घुस कर छत पर सो रही चंचल और उसकी छोटी बहन सोनम पर तेजाब डाल कर
जला दिया। दलितों और महिलाओं के विरोध को कुचलने के लिए ही सामंतवादी ताकतें इतनी
क्रूरता पर उतर आयी हैं। बिहार में आये दिन दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा इसी
सामंतवादी सोच को जाहिर कर रहे हैं। इससे पहले भी वैशाली में एक दलित छात्रा को
दबंग परेशान करते रहे और विरोध करने पर उन्होंने उसके साथ बालात्कार कर के उसे
कुएं में मार कर फेंक दिया था।
दबंगों की क्रूरता का शिकार हुई इंटर में पढ़ी रही चंचल
बैंक में नौकरी करना चाहती थी। उसका यही सपना था ताकि गरीब मां-बाप को बेहतर
जिंदगी दे सके। इसके लिए वह खूब मन लगा कर पढ़ाई भी कर रही थी। अपने सपनों को
उड़ान देने के लिए उसने मनेर से दूर दानापुर में एक निजी संस्थान से कंप्यूटर के
डीसीए कोर्स में भी दाखिला ले लिया था। वह रोज ऑटो से पढ़ने आया जाया करती थी।
वहीं इसकी छोटी बहन सोनम सातवीं में पढ़ रही थी। सोनम की एक आंख पहले से ही खराब
थी, इस हमले के बाद वह और सकते में है। वह भी
पढ़-लिख कर मां-बाप की गरीबी दूर करना चाहती थी। लेकिन दबंगों ने तेजाब से न केवल
इनके शरीर और आंखों को जलाया है बल्कि इनके सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है।
चंचल का चेहरा पूरी तरह से झुलस चुका है। छाती, गला, पीठ और पैर भी
तेजाब से जले हुए हैं। शरीर का कुल 28% भाग जल चुका है। वहीं छोटी बहन सोनम का 20%
भाग, हाथ और पीठ-पैर झुलसा है। चंचल की दशा इतनी बुरी है कि
वह बोल भी नहीं पा रही है। बड़ी मुश्किल से कराहते हुए वह कहती है “बैंक में नौकरी
पा कर मां-बात की गरीबी दूर करना चाहती थी। अब क्या होगा समझ में नहीं आ रहा।
जिंदगी बर्बाद हो गयी है”। ये बताते हुए उसको रोते हुए साफ महसूस किया जा सकता है,
लेकिन हालत ऐसी है कि उसके आंसू भी पता नहीं चलते। बस सुनाई पड़ती
है तो सिसकियां और दर्द भरी कराह।
चंचल के पिता शैलेश पासवान के लिए बेटियां ही सब कुछ थीं।
ऐसे वक्त में जब बेटियों की चाह कोई नहीं रखता, इन्हें हमेशा बेटियों की ही चाह थी। दो बेटियां होने के बाद इन्होंने और
कोई औलाद नहीं चाही। वे फफकते हुए कह पड़ते हैं, “चाहते थे
कि बेटियां अपने पैरों पर खड़ा होकर नाम रोशन करेगी। हमारी गरीबी भी दूर होगी।
इसलिए बेटियों को पढ़ा भी रहे थे। लेकिन अब बेटियों के इस हाल के बाद भविष्य
अंधकारमय हो गया है”।
पीड़ित दलित परिवार बेहद गरीब है। परिवार इंदिरा आवास से
उपलब्ध घर में ही रहता है। कमरों का अभाव होने के कारण ही ठंड शुरू हो जाने के
बावजूद भी बहनों को छत पर सोना पड़ रहा था। मां-बाप मेहनत मजदूरी करके गुजारा करते
हैं। बड़ी मुश्किल से बेटियों की पढ़ाई हो रही थी। सोनम गांव के ही सरकारी स्कूल
में पढ़ाई कर पा रही थी। चंचल जैसे-तैसे कंप्यूटर कोर्स कर रही थी। वहीं अब इस
घटना के बाद परिवार को कुछ सूझ नहीं रहा है। चंचल और सोनम के इलाज में भी पैसे
लगेंगे। फिलहाल तो पटना के पीएमसीएच में मुफ्त में इलाज चल रहा है, लेकिन दवाएं बाहर से भी खरीदनी पड़ रही
हैं। चंचल की हालत इतनी नाजुक है कि इलाज लंबा चलेगा। पूरी तरह से ठीक होने में
लंबा वक्त लगेगा। चेहरा इतना झुलसा है कि कैसे ठीक होगी, कहना
मुश्किल है। बेहतर सर्जरी के लिए अच्छे अस्पताल और इलाज खर्च की जरूरत है। जबकि
परिजन इसमें सक्षम नहीं हैं। फिलहाल पीएमसीएच में इलाज चल रहा है लेकिन ऐसे हाल
में जब बिना काम किये परिजनों का गुजारा मुश्किल है, इलाज
कैसे चलता रहेगा कहना मुश्किल है। बार-बार पत्रकारों और संगठनों की पूछताछ से खीज
चुकी चचंल की मां सुनैना देवी गुस्से में कहती हैं, “कुछो तो
नहीं हो रहा है खबर छपे के। कउनो फायदा नहीं हो रहा। रोजे अखबार में छपइत है लेकिन
अभी तक कोई मुआवजे न मिलल”।
दरिंदों के पक्ष में दैनिक जागरण:
पटना में दैनिक जागरण महिलाओं के मामले में जिस तरह
रिपोर्टिंग कर रहा है, उससे इसकी
सामंतवादी सोच का पता चलता है। पिछले दिनों पटना में गैंग रेप की शिकार लड़की को
जहां बेबुनियादी तर्कों के आधार पर वह कठघरे में खड़ा कर रहा था, वहीं इस मामले में भी कुछ ऐसे ही सवाल खड़े कर रहा है। 26 अक्टूबर को
अखबार लिखता है कि चंचल के फर्द बयान पर उसका अंगूठा क्यों लगा, जबकि वह इंटर की छात्रा है, हस्ताक्षर होना चाहिए
था। इससे काफी कुछ पता चलता है कि गड़बड़ है। अब यह अखबार केवल इस बात से दबंगों
पर आरोप को संदिग्ध बता रहा है। जबकि चंचल की हालत बिल्कुल नाजुक थी। वह निस्तेज
पड़ी रहती थी। बोल पाने में असक्षम थी। ऐसे नाजुक हाल में हस्ताक्षर के बजाय
अंगूठा ले लिया गया होगा। दैनिक जागरण आगे लिखता है कि अपराधियों को घर में किसी
ने नहीं देखा। देर रात सारे लोग सोये थे। सोयी अवस्था में तेजाब डाल अपराधी भाग
खड़े हुए। ऐसे हाल में अपराधियों को कैसे पहचाना जा सकता था। दैनिक जागरण की
रिपोर्ट से साफ है कि वह पीड़ित परिवार को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहा
है।
इस सुशासन में अपराधियों के मनोबल का अंदाजा इसी बात से
लगाया जा सकता है कि मीडिया में इसकी खबर प्रकाशित होने और तीन गिरफ्तारियों होने
के बावजूद दबंगों का हौसला कम नहीं हुआ है। दबंग लगातार परिजनों को धमकी देते फिर
रहे हैं। चंचल के चाचा मिथिलेश पासवान बताते हैं, “26 अक्टूबर की रात को दबंगों ने दुबारा घर पर हमला बोला। रात में दरवाजे
पर धक्का देते रहे, जंजीर खटखटाते रहे और दरवाजा न खोलने पर
घर उड़ा देने की धमकी दी। वहीं 27 अक्टूबर को कुछ संदिग्ध युवक पीएमसीएच तक पहुंच
कर छात्राओं के बारे में पूछते पाए गये”। ऊपर से पुलिस का वही पुराना रटा-रटाया
जवाब मिल रहा है कि धड़-पकड़ जारी है। ऐसे हाल में परिजन भय में जी रहे हैं और
सुशासन कान में तेल डाल कर सो रही है।
पीड़ित परिवार जहां बेहद गरीब है, वहीं इनकी मदद को कोई सामने नहीं आ रहा है।
एपवा और एक-दो दलित संगठनों ने पीड़ितों से मुलाकात के बाद सरकार से मुआवजे और
अपराधियों की गिरफ्तारी की मांग जरूर की है। भाकपा माले ने भी विरोध प्रदर्शन भी
किया है। लेकिन इनका दायरा केवल सरकार से मांग तक सीमित होने के कारण कोई
तात्कालिक सहायता नहीं पहुंची है। बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने मुआवजे की
बात कही है लेकिन अभी तक कोई सहायता राशि परिजनों को नहीं मिली है। कोई सामाजिक
संगठन या एनजीओ ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ली है, जबकि पीड़ित परिवार बेहद गरीब है। बहरहाल चंचल और सोनम के सपने टूट चुके
हैं और इनको मदद की जरूरत है।
ऐसे हाल में जब महिलाओं के खिलाफ लगातार हिंसा सामने आ रही
है, राजधानी में पटना में पिछले दिनों कई गैंग
रेप के मामले सामने आये हैं, दलित छात्राओं के रेप और हत्या
के मामले सामने आये हैं, कुछ ही किलोमीटर दूर मनेर में दबंग
इतने हौसले में हैं कि तेजाब से जलाने और गिरफ्तारी के बाद भी दबंगई से बाज नहीं आ
रहे हैं… ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकार यात्रा के आयोजन में व्यस्त हैं।
अपराधियों का हौसला यों ही नहीं बढ़ा हुआ है। बल्कि इस सुशासन में इन्हीं लोगों की
सहभागिता है। चार नवंबबर को होने वाले अधिकार सम्मेलन को लेकर बाहुबली अनंत सिंह
से लेकर सुनील पांडेय और हुलास पांडेय जैसों के विशालकाय होर्डिंग से पटना की
सड़कें पटी पड़ी हैं। और तो और, अधिकार सम्मेलन के लिए भारी
रंगदारी वसूली जा रही है। 28 अक्टूबर को जदयू के पूर्व सासंद पर अधिकार रैली के
लिए सात करोड़ रुपये रंगदारी मांगने का आरोप लगा है। हाजीपुर के एक निजी शैक्षणिक
ग्रुप डायरेक्टर ने यह आरोप लगाया है। साफ है कि सरकार में कौन लोग हैं। ऐसे लोग
ही सत्ता में शामिल हैं और अधिकार की मांग कर रहे हैं। जहां हाशिये के लोगों के
अधिकार छीने जा रहे हैं, शोषण किया जा रहा है। आखिर सुशासन
बाबू किनके अधिकारों की बात कर रहे हैं? अपराधियों की ही न!
हाशिये के लोगों के अधिकारों की तो न सुशासन बाबू को फिक्र है न प्रशासन को,
फिर सत्ता में सामंतवादी और अपराधी ही तो शामिल हैं। तो क्यों न
अपराधियों और सामंतवादियों का मनोबल बढ़े?
एक व्यक्तिगत अपील: पीड़ित दलित परिवार बेहद गरीब है। मजदूरी से ही खर्चा चलता
है। ऐसे हाल में तेजाब से बुरी तरह झुलसी छात्राओं का पूरी तरह ठीक होना कैसे संभव
है, कह नहीं सकता। सरकारी पीएमसीएच अस्पताल में
मुफ्त इलाज के सिवा और कोई मदद अभी तक सामने नहीं आयी है। इलाज और सर्जरी वगैरह
में लाखों रुपये खर्च हो सकते हैं। संस्थाओं या व्यक्तियों से अनुरोध है कि हो सके
तो पीड़ित परिवार की मदद करें।
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